लक्ष्मण रेखा

लक्ष्मण रेखा : भारतीय पौराणिक कथाओं में अनेक अद्भुत और रहस्यमय विद्याओं का उल्लेख मिलता है, जिनमें से एक है ‘सोमतिती विद्या‘। इस विशेष विद्या को आमतौर पर ‘लक्ष्मण रेखा’ के नाम से जाना जाता है, जो अपने आप में एक अनूठा और विशेष प्रकार का ज्ञान है। इस विद्या का प्रारम्भिक शिक्षण महर्षि वशिष्ठ ने अपने प्रिय शिष्य लक्ष्मण को गुरुकुल में दिया था। लक्ष्मण इस विद्या में इतने निपुण हो गए थे कि उनके नाम पर इस विद्या को ‘लक्ष्मण रेखा’ के रूप में पहचाना जाने लगा।

इस विद्या के बारे में अन्य महान ऋषियों जैसे कि महर्षि दधीचि और महर्षि शांडिल्य भी जानते थे। यह विद्या केवल विशिष्ट और योग्य ऋषियों तक ही सीमित थी और इसका प्रयोग अत्यंत सावधानी और संयम के साथ किया जाता था।

इतिहास के पन्नों पर दर्ज है कि भगवान श्रीकृष्ण इस विद्या के अंतिम ज्ञाता थे। उन्होंने महाभारत के कुरुक्षेत्र युद्ध में इस विद्या का प्रयोग किया था, ताकि युद्ध में प्रयोग किए जाने वाले विनाशकारी अस्त्र-शस्त्रों की शक्ति युद्धक्षेत्र से बाहर न फैल सके। इस विद्या का प्रयोग न केवल युद्ध में, बल्कि विभिन्न आध्यात्मिक और रक्षात्मक परिस्थितियों में भी किया जाता था।

लक्ष्मण रेखा

सोमतिती विद्या‘ के मंत्रों का प्रयोग करके एक विशेष यंत्र, ‘सोमना कृतिक यंत्र’, को सक्रिय किया जा सकता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, यह यंत्र पृथ्वी और बृहस्पति ग्रह के बीच स्थित है और इसकी क्षमता अग्नि, वायु और जल के परमाणुओं को सोखने की है। इस यंत्र को सक्रिय करने के लिए, विशेष मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, जिससे शक्तिशाली और प्रभावी लेजर बीम जैसी किरणें उत्पन्न होती हैं। ये किरणें पृथ्वी पर किसी भी स्थान पर एक सुरक्षित और अभेद्य दायरा बना सकती हैं। अगर कोई भी इस दायरे में जबरदस्ती प्रवेश करने की कोशिश करता है, तो उसे अग्नि, विद्युत और वायु का ऐसा प्रचंड झटका लगेगा कि वह तत्काल नष्ट हो जाएगा।

सोमतिती विद्या को सिद्ध करने का मंत्र है “सोमंब्रहि वृत्तं रत: स्वाहा वेतु सम्भव ब्रहे वाचम प्रवाणम अग्नं ब्रहे रेत: अवस्ति”

महर्षि श्रृंगी के अनुसार, सोमतिती विद्या के मंत्रों का उच्चारण अत्यंत सावधानीपूर्वक और गहन आध्यात्मिक शक्ति के साथ किया जाना चाहिए। यह मंत्र न केवल शब्दों का एक समूह है, बल्कि एक विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत भी है, जिसके प्रयोग से ‘सोमना कृतिक यंत्र’ सक्रिय होता है। इस विद्या का उपयोग लक्ष्मण ने सीता की रक्षा के लिए किया था, जब उन्होंने एक अदृश्य और अभेद्य दायरा खींचा था, जिसे पार करके कोई भी शत्रु सीता को हानि नहीं पहुंचा सकता था। यह विद्या सिर्फ एक शारीरिक बाधा नहीं थी, बल्कि एक आध्यात्मिक सुरक्षा कवच भी प्रदान करती थी, जो कि अपने आप में एक अनूठी और दिव्य शक्ति थी।

 

सोमतिती विद्या से संबंधित प्रश्नोत्तरी

प्रश्न: लक्ष्मण रेखा का असली नाम क्या है?
उत्तर: लक्ष्मण रेखा का असली नाम ‘सोमतिती विद्या’ है।

प्रश्न: सोमतिती विद्या किसने लक्ष्मण को सिखाई थी?
उत्तर: महर्षि वशिष्ठ ने लक्ष्मण को सोमतिती विद्या सिखाई थी।

प्रश्न: लक्ष्मण रेखा किस प्रकार की विद्या है?
उत्तर: यह एक रक्षात्मक और आध्यात्मिक विद्या है।

प्रश्न: सोमतिती विद्या का प्रयोग किस अन्य महर्षि ने किया था?
उत्तर: महर्षि दधीचि और महर्षि शांडिल्य भी इस विद्या के जानकार थे।

प्रश्न: भगवान श्रीकृष्ण ने कब और कहां सोमतिती विद्या का प्रयोग किया?
उत्तर: श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के युद्ध में इस विद्या का प्रयोग किया था।

प्रश्न: ‘सोमना कृतिक यंत्र’ क्या है?
उत्तर: यह एक दिव्य यंत्र है जिसे सोमतिती विद्या के मंत्रों से सक्रिय किया जा सकता है।

प्रश्न: लक्ष्मण ने सोमतिती विद्या का प्रयोग किस परिस्थिति में किया था?
उत्तर: लक्ष्मण ने सीता की रक्षा के लिए इस विद्या का प्रयोग किया था।

प्रश्न: सोमतिती विद्या की शक्तियाँ क्या हैं?
उत्तर: यह विद्या अग्नि, वायु, और जल के परमाणुओं को सोख सकती है और शक्तिशाली किरणें उत्पन्न कर सकती है।

प्रश्न: सोमतिती विद्या का अंतिम ज्ञाता कौन था?
उत्तर: भगवान श्रीकृष्ण।

 

अन्य महत्वपूर्ण लेख

52 वीर तांत्रिक साधना

अर्जुन के रथ का अंत

रावण की पत्नी मंदोदरी

नाभि रहस्य

महाभारत के विधुर

ऋषि दुर्वासा : शक्ति और तपस्या के प्रतीक

स्वयम्भुव मनु

श्री राम की बहन शांता

स्वामी विवेकानंद जयंती 2024

शक्तिचालिनी मुद्रा

One thought on “लक्ष्मण रेखा : सोमतिती विद्या, एक अद्भुत विज्ञान”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *