बजरंग बाण

बजरंग बाण, जो भगवान हनुमान को समर्पित एक अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र है, हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह स्तोत्र संकटों के समय में भक्तों को अद्भुत शक्ति प्रदान करने के लिए प्रसिद्ध है। बजरंग बाण की रचना की कथा पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। इसके श्लोकों में भगवान हनुमान की वीरता, शक्ति और भक्ति का वर्णन है। यह स्तोत्र विशेष रूप से तब पढ़ा जाता है जब कोई व्यक्ति अत्यधिक संकट में होता है और तत्काल राहत पाने के लिए भगवान हनुमान की शरण में जाता है।

बजरंग बाण

बजरंग बाण की रचना किसने की थी ?

“बजरंग बाण” की रचना तुलसीदास जी ने की थी। तुलसीदास जी, जिन्होंने 16वीं शताब्दी में “रामचरितमानस” की भी रचना की थी, हिन्दू धर्म में अपने भक्ति साहित्य के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। “बजरंग बाण” हनुमान जी की शक्ति और भक्ति का एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है और इसका पाठ विशेष रूप से संकटों के समय में भक्तों द्वारा किया जाता है। तुलसीदास जी का यह कृतित्व हनुमान जी के प्रति उनकी अगाध भक्ति का परिचायक है।

बजरंग बाण कितने दिन में सिद्ध होता है?

“बजरंग बाण” के सिद्ध होने का समय स्थापित नियमों और व्यक्तिगत भक्ति के स्तर पर निर्भर करता है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं में यह विचार है कि किसी भी स्तोत्र या मंत्र का सिद्ध होना भक्त की श्रद्धा, निष्ठा और नियमित अभ्यास पर निर्भर करता है। “बजरंग बाण” के पाठ के लिए कोई विशिष्ट समय-सीमा निर्धारित नहीं है। कुछ परंपराएं या आस्था के अनुसार, इसका नियमित पाठ एक निश्चित संख्या में दिनों तक किया जा सकता है, जैसे कि 11, 21, 41 या 108 दिन। लेकिन यह संख्या व्यक्तिगत आस्था और परंपराओं पर निर्भर करती है।

महत्वपूर्ण यह है कि पाठ करते समय भक्त की भावना, श्रद्धा और समर्पण होना चाहिए। “बजरंग बाण” के सिद्ध होने की प्रक्रिया में यह आवश्यक है कि भक्त पूरे मन से और सम्पूर्ण आस्था के साथ पाठ करे। इसके अलावा, नियमित रूप से और सही विधि से पाठ करना भी महत्वपूर्ण है। यदि पाठ नियमित और श्रद्धापूर्वक किया जाए, तो माना जाता है कि बजरंग बाण जल्दी सिद्ध हो सकता है।

हनुमान चालीसा और बजरंग बाण में क्या अंतर है?
  • हनुमान चालीसा आमतौर पर दैनिक प्रार्थना, मन की शांति, और आत्म-संतुष्टि के लिए पढ़ी जाती है। इसमें हनुमान जी की शक्ति, ज्ञान, विनम्रता, और भक्ति का वर्णन होता है वहीँ बजरंग बाण का प्रयोग अक्सर अत्यधिक कठिन और असाधारण परिस्थितियों में किया जाता है, जब तत्काल और शक्तिशाली सहायता की आवश्यकता होती है। इसे संकटों से रक्षा के लिए शक्तिशाली माना जाता है।
  • हनुमान चालीसा में 40 छंद (चालीसा – चालीस का अर्थ होता है ‘चालीस’) होते हैं और यह हनुमान जी की महिमा और उनके विभिन्न रूपों का वर्णन करती है।वहीँ बजरंग बाण में विशेष श्लोक होते हैं जिनमें शक्तिशाली अपील और प्रार्थनाएँ होती हैं, जो सीधे भगवान हनुमान से सहायता और संरक्षण की गुहार लगाती हैं।
  • हनुमान चालीसा का पाठ अधिक सहज और सरल है। इसे दैनिक पूजा में या किसी भी समय पढ़ा जा सकता है, विशेष नियमों की आवश्यकता नहीं होती। वहीँ बजरंग बाण का पाठ विशिष्ट स्थितियों में और निश्चित नियमों के साथ किया जाता है। कई बार इसके पाठ के लिए विशेष दिन, समय और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का पालन किया जाता है।
बजरंग बाण का पाठ

||दोहा||
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

||चौपाई||
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥
अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥
जय हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥
बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥

||दोहा||
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।।
‘तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।

 

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