सनातन धर्म में न्याय दर्शन, जिसे विश्व में अक्सर हिंदू धर्म के नाम से जाना जाता है, एक प्राचीन धर्म है जिसकी मूलभूत शिक्षाएँ और सिद्धांत अनेक धार्मिक ग्रंथों में व्यक्त किए गए हैं। यह धर्म जीवन, सृष्टि, और परमात्मा के संबंध में गहरे और विविध ज्ञान का संचार करता है।
“दर्शन” शब्द ‘दर्श’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है ‘देखना’ या ‘निरीक्षण करना’। दर्शन अतः वह विधा है जो हमें विश्व और उसके प्रति हमारे संबंध को समझाने में मदद करता है। इसमें जीवन, ब्रह्मांड और परमात्मा के अद्वितीय संबंध और समझ को प्रकट किया जाता है।
सनातन धर्म में, दर्शन वह ज्ञान और समझ प्रदान करता है जो हमें जीवन के सच्चाई और अध्यात्मिकता की ओर मार्गदर्शन करता है। यह न केवल तात्विक और अभिजात ज्ञान का स्रोत है, बल्कि यह जीवन के अद्वितीय पहलुओं को उजागर करने वाला एक माध्यम भी है।
इस परिचय में, हमने दर्शन को सनातन धर्म के अभिन्न हिस्से के रूप में पेश किया है, जो व्यक्ति को उसकी अस्तित्व, प्रकृति, और अध्यात्मिक जागरूकता की ओर मार्गदर्शन करता है।
सनातन धर्म में छह प्रमुख दर्शन शाखाएँ हैं:
- न्याय दर्शन
- वैशेषिक दर्शन
- सांख्य दर्शन
- योग दर्शन
- मीमांसा दर्शन
- वेदांत दर्शन
इस लेख मैं हम सिर्फ न्याय दर्शन को विस्तार से समझेंगे –
1).न्याय दर्शन :- न्याय दर्शन हिंदू दर्शन की प्रमुख शाखाओं में से एक है और इसे ‘तर्कशास्त्र’ के रूप में भी जाना जाता है। न्याय शब्द का अर्थ है ‘तर्क’ या ‘न्यायिक विवेचना’। इस दर्शन में विचार-विमर्श, प्रमाण-शास्त्र और तर्क पर विशेष जोर दिया गया है। न्याय दर्शन की शुरुआत गौतम मुनि जिनको अक्षपाद के नाम से भी जाना जाता है ने की थी। यह दर्शन वैदिक दर्शन की श्रेणी मैं आता है।
न्याय दर्शन का एक मतलब ‘सत्य को जानने की खोज भी है‘ और सत्य को जानने के लिए उन्होंने चार प्रमाण माने गए हैं, जो हैं –
- प्रत्यक्ष (प्रत्यक्ष अनुभव): – ‘प्रत्यक्ष’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है – ‘प्रति’ और ‘अक्ष’. इसका शाब्दिक अर्थ होता है ‘सामने आनेवाला’ या ‘सीधे देखा गया’. प्रत्यक्ष अनुभव वह अनुभव है जो हमें हमारी इंद्रियों के माध्यम से प्राप्त होता है। प्रत्यक्ष का स्रोत हमारी पाँच इंद्रियाएं हैं – दृष्टि, श्रवण, घ्राण, रसना और त्वचा। जब ये इंद्रियाएं विषय के संपर्क में आती हैं, तो हमें प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त होता है। न्याय दर्शन में, प्रत्यक्ष को प्रमाण के रूप में सबसे अधिक महत्व दिया गया है, क्योंकि इसे सबसे अधिक विश्वसनीय और सटीक माना जाता है।
- अनुमान (अनुमानित जानकारी) :- ‘अनुमान’ शब्द ‘अनु’ और ‘मान’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है ‘बाद में मानना’ या ‘निष्कर्ष पर पहुंचना’। अनुमान वह प्रक्रिया है जिसमें हम किसी विशेष घटना, परिस्थिति या वस्तु के आधार पर निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। हमारे पास हर समय प्रत्यक्ष जानकारी नहीं होती। अनुमान हमें उन बातों के बारे में जानकारी प्रदान करता है जिन्हें हम सीधे नहीं जान सकते, उदाहरण: जहाँ धुंध है, वहाँ आग है। अनुमान एक महत्वपूर्ण ज्ञान प्राप्ति का साधन है, जिससे हम अपनी वर्तमान जानकारी और समझ को विस्तारित करते हैं। न्याय दर्शन में, अनुमान को एक महत्वपूर्ण प्रमाण के रूप में स्वीकार किया गया है, जो प्रत्यक्ष प्रमाण के बाद आता है। यह हमें वह जानकारी प्रदान करता है जिसे हम सीधे अनुभव नहीं कर सकते, लेकिन तर्क के माध्यम से पहुंच सकते हैं।
- उपमान (तुलना):- उपमान, जिसे तुलना भी कहा जाता है, वह प्रमाण है जिसमें ज्ञान को प्राप्त किया जाता है दो वस्तुओं, स्थलों, जीवों आदि की समानता के माध्यम से। उपमान के माध्यम से हम एक अज्ञात वस्तु को पहले से परिचित वस्तु के संदर्भ में जानते हैं। उदाहरण: यदि किसी व्यक्ति ने कभी गेंदुआ नहीं देखा है और उससे कहा जाए कि गेंदुआ एक प्रकार का सियाही पिला जानवर होता है जो बाघ की तरह दिखता है, तो यहां ‘बाघ’ उपमान है और ‘गेंदुआ’ उपमेय है। उपमान हमें एक अज्ञात वस्तु, स्थल या घटना के बारे में जानकारी प्रदान करता है जिसे हम पहले से परिचित वस्तु के संदर्भ में जानते हैं। यह ज्ञान प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण साधन है जो हमें नई और अज्ञात चीजों को समझने में मदद करता है।
- शब्द (आप्त वचन या अधिकृत शब्द):- शब्द प्रमाण वह है जिसमें ज्ञान को किसी विश्वासयोग्य या आप्त स्रोत से प्राप्त किया जाता है। यह वह ज्ञान है जो हमें ग्रंथों, आचार्यों, और अन्य विश्वासयोग्य व्यक्तियों के माध्यम से प्राप्त होता है। उदाहरण: जब हम वेदों, उपनिषदों, भगवद गीता आदि शास्त्रीय ग्रंथों से ज्ञान प्राप्त करते हैं, तो वह ज्ञान ‘शब्द प्रमाण’ के अंतर्गत आता है। ये ग्रंथ आप्त स्रोत के रूप में माने जाते हैं क्योंकि इन्हें दिव्य ज्ञान के स्रोत के रूप में माना जाता है। शब्द प्रमाण वह ज्ञान है जो हमें विश्वासयोग्य और अधिकृत स्रोत से प्राप्त होता है। इसे ज्ञान का सबसे विशुद्ध और सटीक स्रोत माना जाता है। जब हम किसी विषय में संशय होता है, तब इस प्रकार के ज्ञान पर विश्वास किया जा सकता है, क्योंकि इसमें
न्याय दर्शन में 16 तत्त्वों की चर्चा: – न्याय दर्शन में 16 मुख्य तत्त्वों की चर्चा की गई है, जो निम्नलिखित हैं:
- प्रमेय: प्रमेय वे विषय हैं जिस पर ज्ञान प्राप्त होता है।
- प्रमाण: ज्ञान प्राप्ति का साधन। जैसे प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द।
- संशय: स्पष्ट ज्ञान की अभाव में उत्पन्न होने वाली द्वयभासिता।
- प्रयोजन: किसी कार्य का उद्देश्य या लक्ष्य।
- दृष्टांत: ज्ञान की पुष्टि के लिए प्रस्तुत उदाहरण।
- सिद्धांत: स्थिर और सामान्य सत्य।
- अवयव: तर्क के विभिन्न घटक।
- तर्क: अनुमान की प्रक्रिया।
- निर्णय: स्थिर निष्कर्ष।
- वाद: सत्य की खोज में चर्चा।
- जल्प: विवाद में प्रतिस्पर्धा।
- वितण्डा: जिसमें किसी निश्चित मत की अभाव हो।
- हेत्वाभास: दोषपूर्ण तर्क।
- चल: शब्दों के अर्थ में दोष।
- जाति: सामान्य दोष।
- निग्रहस्थान: वाद में पराजय का स्थान।
ये 16 तत्त्व न्याय दर्शन की आधारशिला हैं। इन्हें समझने और समझाने के माध्यम से ज्ञान प्राप्ति, तर्क, और सत्य के प्रति मार्गदर्शन की गई है। ये तत्त्व विचारशील मनुष्य को जीवन और जगत के संबंध में उचित समझ प्रदान करते हैं।
न्याय दर्शन में ईश्वर और मोक्ष:- न्याय दर्शन भारतीय दार्शनिक परंपरा में तर्क और प्रमाण की विस्तृत चर्चा के लिए प्रसिद्ध है। ऋषि गौतम द्वारा प्रस्तुत इस दर्शन में, ईश्वर और मोक्ष जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर भी चर्चा हुई है।
- ईश्वर का स्वरूप: न्याय दर्शन में ईश्वर को सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी माना गया है। वह संसार के निर्माण, स्थिति और प्रलय का कारण है। ईश्वर अनादि (जिसकी कोई आरंभ नहीं है) और अनन्त (जिसका कोई अंत नहीं है) है।
- मोक्ष: मोक्ष को संसार की दुःखभरी जीवन चक्र से मुक्ति प्राप्त करना माना गया है। न्याय दर्शन में, मोक्ष की प्राप्ति के लिए ज्ञान का महत्वपूर्ण भूमिका है। सच्चे ज्ञान की प्राप्ति से ही जीव अज्ञान, जो कि जीवन के दुःख का मूल कारण है, से मुक्त होता है।
- ईश्वर और मोक्ष का संबंध: न्याय दर्शन में ईश्वर को मोक्ष का कारण माना गया है। जब एक जीव अपने कर्मों को पूरा कर लेता है और सच्चे ज्ञान को प्राप्त कर लेता है, तो वह ईश्वर की कृपा से मोक्ष प्राप्त करता है।
न्याय दर्शन में, ईश्वर और मोक्ष का महत्वपूर्ण स्थान है। जबकि ईश्वर को संसार के निर्माण, स्थिति और प्रलय का कारण माना जाता है, तब मोक्ष को जीवन की सर्वोत्तम और अंतिम प्राप्ति माना जाता है।
न्याय दर्शन से संबंधित 15 प्रश्नोत्तरी
- न्याय दर्शन क्या है?
- न्याय दर्शन भारतीय दार्शनिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंग है जो तर्क, न्याय, और ज्ञान के सिद्धांतों पर केंद्रित है।
- न्याय दर्शन के प्रणेता कौन थे?
- न्याय दर्शन के प्रणेता महर्षि गौतम हैं।
- न्याय सूत्र किसने लिखे?
- न्याय सूत्र महर्षि गौतम द्वारा लिखित ग्रंथ हैं।
- न्याय दर्शन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- इसका मुख्य उद्देश्य तर्क और विवेक के माध्यम से सत्य का ज्ञान प्राप्त करना है।
- न्याय दर्शन में ‘प्रमाण’ क्या है?
- न्याय दर्शन में प्रमाण ज्ञान के विश्वसनीय स्रोत होते हैं, जैसे प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द।
- न्याय दर्शन में ‘प्रत्यक्ष’ क्या है?
- प्रत्यक्ष इंद्रियों के माध्यम से प्राप्त सीधा ज्ञान है।
- न्याय दर्शन में ‘अनुमान’ का क्या अर्थ है?
- अनुमान तर्क के माध्यम से निष्कर्ष निकालना है।
- न्याय दर्शन में ‘उपमान’ क्या है?
- उपमान समानता या तुलना के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करना है।
- न्याय दर्शन में ‘शब्द’ क्या है?
- शब्द विश्वसनीय और प्रामाणिक स्रोतों से प्राप्त ज्ञान है।
- न्याय और वैशेषिक दर्शन में क्या संबंध है?
- न्याय और वैशेषिक दर्शन दोनों तर्क और वस्तुनिष्ठता पर आधारित हैं और अक्सर इन्हें एक साथ पढ़ाया जाता है।
- न्याय दर्शन का आधुनिक तर्कशास्त्र से क्या संबंध है?
- न्याय दर्शन के तर्क सिद्धांत आधुनिक तर्कशास्त्र के समानांतर हैं और तर्क के विकास में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।
- न्याय दर्शन में ‘वाद’ क्या होता है?
- ‘वाद’ न्याय दर्शन में तर्क-वितर्क और बहस की प्रक्रिया होती है।
- न्याय दर्शन का भारतीय दर्शन में क्या महत्व है?
- न्याय दर्शन भारतीय दर्शन में तर्क और विवेक के सिद्धांतों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण है।
- न्याय दर्शन की आधुनिक समाज में क्या प्रासंगिकता है?
- न्याय दर्शन आधुनिक समाज में तर्क, विवेक, और न्यायिक चिंतन में महत्वपूर्ण है।
- न्याय दर्शन का वैश्विक दर्शन में क्या स्थान है?
- न्याय दर्शन के सिद्धांत वैश्विक दर्शन में तर्क और विवेक के माध्यम से सत्य की खोज में योगदान देते हैं।
अन्य महत्वपूर्ण लेख –
तीन शरीर (स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर तथा कारण शरीर) की विस्तृत जानकारी।
सुषुम्ना नाड़ी से जुडी सम्पूर्ण जानकारी
भारतीय योग शास्त्र में पांच प्राण ?
[…] शाखओं मैं से एक है। इससे पहले हमने न्याय दर्शन को समझा है और आज हम वैशेषिक दर्शन को […]
[…] से एक है। इससे पहले हमने दो दर्शन जो की न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन के बारे मैं विस्तार […]
[…] सनातन धर्म में न्याय दर्शन ? […]