ध्यान की उच्चतम अवस्था

ध्यान की उच्चतम अवस्था, योग की प्राचीन विद्या है जिसका अभ्यास आत्म-ज्ञान, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए किया जाता है। इस यात्रा में ध्यान की उच्चतम अवस्था है समाधि, जो आत्मा और परमात्मा के मिलन का अनुभव है। यह एक ऐसी अवस्था है जहाँ मन की सभी चंचलताएं थम जाती हैं और व्यक्ति पूर्ण चेतना की स्थिति में पहुँचता है।

समाधि क्या है?

ध्यान की उच्चतम अवस्था

समाधि (Samadhi) एक ध्यान योगी या ध्यानिक की आध्यात्मिक अनुभव की गहरी ध्यान स्थिति होती है, जिसमें व्यक्ति अपने विचारों, इंद्रियों और बाह्य प्रशांतता को पार करके एक अद्वितीय अवस्था में एकाग्र हो जाता है। यह एक आध्यात्मिक अनुभव का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो ध्यान योगी अपने योगिक प्रैक्टिस के दौरान प्राप्त करते हैं।

समाधि की अवस्था में व्यक्ति अपने आत्मा या ब्रह्मन के साथ एक एकता अनुभव करता है, जिसमें उसके व्यक्तिगत अहंकार (आगर्ह अपने आप को प्रत्येक अलग व्यक्ति के रूप में देखने की प्रक्रिया) का नाश हो जाता है। इसका मतलब है कि समाधि के समय व्यक्ति अपने आप को और जगत को एक अद्वितीय, अबिन्न और अच्युत मानता है, जिससे उसे आत्मज्ञान और मोक्ष का अनुभव होता है। समाधि ध्यान योग के महत्वपूर्ण अंग है और योग सूत्रों में प्रमुख रूप से उसका उल्लेख किया गया है। योगियों का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि वे समाधि प्राप्त करें और अपने आत्मा के साथ एकात्म अनुभव करें, जिससे मोक्ष या आत्मा की मुक्ति प्राप्त हो सके।

समाधि के प्रकार

ध्यान की उच्चतम अवस्था

समाधि के प्रकार योग और ध्यान की परंपराओं में विभिन्न अवस्थाओं को दर्शाते हैं, जहां व्यक्ति अलग-अलग स्तरों की आत्मिक और चेतना की गहराई में पहुंचता है। प्रमुख रूप से, समाधि को दो मुख्य श्रेणियों में बांटा जा सकता है:

  • सविकल्प समाधि
  • निर्विकल्प समाधि।
सविकल्प समाधि (Savikalpa Samadhi)

सविकल्प समाधि, जिसे सविचार समाधि भी कहा जाता है, ध्यान की एक ऐसी अवस्था है जहां ध्यानी का मन अभी भी द्वैत या भेदभाव में लिप्त होता है। इस अवस्था में, ध्यान करने वाला व्यक्ति और ध्यान का विषय या उद्देश्य अलग-अलग माने जाते हैं। सविकल्प समाधि, ध्यान की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण चरण है और इसे निर्विकल्प समाधि की ओर एक कदम माना जाता है। सविकल्प समाधि को और भी विभाजित किया जा सकता है:

  • सवितर्क समाधि (Savitarka Samadhi) : सवितर्क समाधि में, ध्यानी का मन किसी विशेष वस्तु, विचार, या धारणा पर केंद्रित होता है, लेकिन इसमें तर्क या विवेचना शामिल होती है। इस अवस्था में, ध्यान का विषय संज्ञानात्मक और विचार-आधारित होता है। ध्यानी वस्तु के विभिन्न पहलुओं, गुणों, और उसके संबंधों पर विचार करता है।
  • सविचार समाधि (Savichara Samadhi) : सविचार समाधि में, ध्यान का विषय अधिक सूक्ष्म और अव्यक्त होता है, जैसे कि भावनाएँ, अनुभूतियाँ, या अवधारणाएँ। यहाँ ध्यानी वस्तु के सूक्ष्म स्वरूप और उसकी आंतरिक प्रकृति पर मनन करता है। इसमें शामिल है वस्तु के प्रति व्यक्ति के आंतरिक अनुभव और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं का चिंतन।
  • सानंद समाधि (Sananda Samadhi) : इस प्रकार की समाधि में, ध्यानी आनंद या आत्म-संतुष्टि की भावनाओं पर केंद्रित होता है। यहाँ, विषय नहीं बल्कि आनंद का अनुभव ही मुख्य होता है, और ध्यानी उस आनंद के साथ एकाकार हो जाता है।
  • सास्मिता समाधि (Sasmita Samadhi) : सास्मिता समाधि में, ध्यानी अहंकार या ‘मैं’ की भावना पर केंद्रित होता है। यह एक ऐसी अवस्था है जहां ध्यानी अपने अस्तित्व की गहराई में जाता है और अपने आप में विलीन हो जाता है।सविकल्प समाधि के ये प्रकार ध्यानी को विभिन्न चेतना की अवस्थाओं में ले जाते हैं, जिससे वह अंततः निर्विकल्प समाधि की ओर अग्रसर होता है। ये अवस्थाएं ध्यान के गहराई में जाने की प्रक्रिया का एक हिस्सा हैं, जहां ध्यानी आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ता है।

सविकल्प समाधि की विशेषताएं:

  • द्वैत या द्वंद्व: इस अवस्था में व्यक्ति और उसका ध्यान विषय अलग-अलग माने जाते हैं। ध्यानी स्वयं और ध्यान के विषय के बीच एक भेद का अनुभव करता है।
  • मनसिक एकाग्रता: इस अवस्था में मन एक विशेष विचार, धारणा या वस्तु पर केंद्रित होता है। मन उस विचार या वस्तु में पूरी तरह से लीन होता है, लेकिन उसके और वस्तु के बीच का भेद अभी भी बना रहता है।
  • विचार और धारणा: ध्यानी इस अवस्था में विशेष विचार या धारणा पर गहराई से चिंतन करता है। यह विचार या धारणा किसी देवता, मंत्र, चक्र, या अन्य आध्यात्मिक विषय पर केंद्रित हो सकती है।

 

निर्विकल्प समाधि (Nirvikalpa Samadhi)

निर्विकल्प समाधि, जो योग में चेतना की सर्वोच्च अवस्था मानी जाती है, वास्तव में एक एकल और अद्वितीय अवस्था होती है। इसलिए, इसे विभिन्न प्रकारों में विभाजित नहीं किया जाता है। हालांकि, इसके पहुँचने की प्रक्रिया और अनुभव व्यक्ति के आध्यात्मिक मार्ग पर निर्भर करता है।

निर्विकल्प समाधि एक ऐसी अवस्था है जहाँ ध्यानी का अहंकार, मन, और भावनाएँ पूरी तरह से विलीन हो जाती हैं, और वह पूर्ण आत्म-ज्ञान और ब्रह्मानंद का अनुभव करता है। इस अवस्था में, ध्यानी किसी भी विचार या भावना से परे होता है, और उसकी चेतना पूर्ण रूप से आत्मन में स्थित होती है।

निर्विकल्प समाधि को योग दर्शन में अंतिम लक्ष्य माना जाता है, जहां व्यक्ति पूर्ण आत्मिक मुक्ति या मोक्ष की स्थिति प्राप्त करता है। इस अवस्था में पहुँचने के बाद, व्यक्ति को जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है, और वह सर्वोच्च आध्यात्मिक अवस्था में स्थिर हो जाता है। चूंकि निर्विकल्प समाधि आत्म-ज्ञान और ब्रह्मानंद की अवस्था है, इसलिए इसे और अधिक विभाजित करना संभव नहीं है। यह योग की एक अखंड और अद्वितीय अवस्था है।

निर्विकल्प समाधि की विशेषताएं:

  • विचार रहित अवस्था: निर्विकल्प समाधि में व्यक्ति का मन किसी भी विचार, कल्पना, या भावना से मुक्त हो जाता है। इस अवस्था में, मन पूर्णतः निर्विचारित और शांत होता है।
  • आत्मा और परमात्मा का साक्षात्कार: इस अवस्था में, ध्यानी आत्मा और परमात्मा के बीच के भेद को मिटा देता है और एकात्मकता का अनुभव करता है।
  • पूर्ण चेतना: निर्विकल्प समाधि में व्यक्ति पूर्ण चेतना की अवस्था में पहुंचता है, जहां वह सभी बाह्य और आंतरिक प्रभावों से मुक्त हो जाता है।
  • आध्यात्मिक उन्नति: यह अवस्था आध्यात्मिक उन्नति का सर्वोच्च स्तर है, जहां व्यक्ति अपने सच्चे स्वरूप को पहचानता है और आत्म-साक्षात्कार करता है।

निर्विकल्प समाधि का महत्व:

निर्विकल्प समाधि की अवस्था न केवल आध्यात्मिक प्रगति का प्रतीक है, बल्कि यह आत्म-ज्ञान और सच्चाई की खोज में एक महत्वपूर्ण पड़ाव भी है। इस अवस्था में पहुँचने वाले योगी जीवन के गहरे रहस्यों को समझते हैं और अनुभव करते हैं कि सभी जीवन रूपों में एक समान चेतना विद्यमान है। इसके अलावा, निर्विकल्प समाधि से मानसिक शांति, आत्मिक संतोष और जीवन के प्रति गहरी समझ भी प्राप्त होती है। निर्विकल्प समाधि तक पहुँचने के लिए गहन अभ्यास, ध्यान, और आत्म-अनुशासन की आवश्यकता होती है। यह योगिक साधना का अंतिम लक्ष्य होता है, जिसे प्राप्त करने के बाद व्यक्ति पूर्ण रूप से आत्म-ज्ञान और आध्यात्मिक जागरूकता में स्थिर हो जाता है।

 

समाधि तक पहुंचने की यात्रा

समाधि तक पहुंचने की यात्रा योग और ध्यान के पथ पर एक गहन और विस्तृत प्रक्रिया है। यह यात्रा अष्टांग योग के आठ चरणों के माध्यम से सम्पन्न होती है, जिसे पतंजलि ने योग सूत्र में वर्णित किया है। इसमें याम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि शामिल हैं। आइए इन चरणों को विस्तार से समझते हैं:

  1. यम और नियम (आचार-विचार संहिता) :– योग की इस यात्रा का पहला चरण यम और नियम का पालन करना है, जिसमें नैतिक और आत्म-अनुशासन के सिद्धांत शामिल हैं। यह चरण व्यक्ति को आध्यात्मिक पथ पर चलने के लिए आवश्यक आधारभूत नैतिकता और अनुशासन प्रदान करता है।
  2. आसन और प्राणायाम (शारीरिक और श्वास अभ्यास) :- आसनों का अभ्यास शरीर को स्वस्थ और लचीला बनाने के लिए किया जाता है, जबकि प्राणायाम श्वास को नियंत्रित करता है, जिससे मन को स्थिरता और एकाग्रता प्राप्त होती है।
  3. प्रत्याहार (इंद्रियों का नियंत्रण) :- प्रत्याहार में इंद्रियों को बाह्य विषयों से वापस खींचना और आंतरिक चेतना की ओर मोड़ना शामिल है। इससे मन की चंचलता कम होती है और ध्यान के लिए तैयारी होती है।
  4. धारणा (एकाग्रता) :- धारणा में मन को एक विशेष बिंदु या विषय पर केंद्रित किया जाता है। यह ध्यान के लिए आवश्यक एकाग्रता को विकसित करता है।
  5. ध्यान (सतत ध्यान) :- ध्यान में व्यक्ति अपने चयनित विषय या बिंदु पर निरंतर और गहराई से ध्यान केंद्रित करता है। यह चरण मन की और अधिक स्थिरता और गहराई की ओर ले जाता है।
  6. समाधि (अंतिम ध्यान की अवस्था) :- समाधि ध्यान की उच्चतम अवस्था है, जहां व्यक्ति का मन पूर्ण रूप से स्थिर होता है और वह अपने आप में लीन हो जाता है। यहाँ, ध्यानी अपने आप को और ध्यान के विषय को भिन्न नहीं मानता, बल्कि उसमें पूरी तरह से लीन हो जाता है।

समाधि तक पहुंचने की यह यात्रा गहरी साधना, अनुशासन, और आत्म-निरीक्षण की मांग करती है। यह व्यक्तिगत आध्यात्मिक विकास की यात्रा है जो आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाती है।

 

समाधि से संबंधित प्रश्नोत्तरी

  • प्रश्न: समाधि क्या है?
    उत्तर: समाधि ध्यान की सबसे उच्च और गहरी अवस्था है, जहां ध्यानी का चेतना पूर्णतया स्थिर होता है।
  • प्रश्न: समाधि के मुख्य प्रकार कौन से हैं?
    उत्तर: समाधि के दो मुख्य प्रकार हैं – सविकल्प समाधि और निर्विकल्प समाधि।
  • प्रश्न: सविकल्प समाधि क्या है?
    उत्तर: सविकल्प समाधि एक ऐसी अवस्था है जहां ध्यानी का मन एक विशेष वस्तु या विचार पर केंद्रित होता है।
  • प्रश्न: निर्विकल्प समाधि क्या है?
    उत्तर: निर्विकल्प समाधि वह अवस्था है जहां ध्यानी किसी भी विचार या धारणा से मुक्त होता है।
  • प्रश्न: समाधि तक पहुँचने की प्रक्रिया में कौन से चरण होते हैं?
    उत्तर: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और अंत में समाधि।
  • प्रश्न: समाधि के क्या लाभ हैं?
    उत्तर: समाधि से मानसिक शांति, आत्म-ज्ञान, भावनात्मक संतुलन, और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  • प्रश्न: समाधि के दौरान व्यक्ति की चेतना का क्या होता है?
    उत्तर: समाधि में व्यक्ति की चेतना पूर्णतः स्थिर और एकाग्र होती है।
  • प्रश्न: समाधि और ध्यान में क्या अंतर है?
    उत्तर: ध्यान एक गहरी एकाग्रता की प्रक्रिया है, जबकि समाधि इससे भी गहरी अवस्था है जहां एकाग्रता पूर्णता को प्राप्त करती है।
  • प्रश्न: समाधि कैसे प्राप्त की जा सकती है?
    उत्तर: समाधि के लिए निरंतर और गहरे ध्यान, आत्म-अनुशासन, और योगिक प्रथाओं का अभ्यास आवश्यक है।
  • प्रश्न: क्या समाधि स्थायी अवस्था है?
    उत्तर: समाधि एक उच्च अवस्था है, लेकिन शुरुआत में यह अस्थायी हो सकती है। साधना के गहराई से यह स्थायी हो सकती है।
  • प्रश्न: समाधि के दौरान व्यक्ति की शारीरिक अवस्था क्या होती है?
    उत्तर: समाधि के दौरान शारीरिक गतिविधियाँ न्यूनतम हो जाती हैं और व्यक्ति पूर्ण शांति में होता है।
  • प्रश्न: क्या समाधि में व्यक्ति को समय का बोध होता है?
    उत्तर: समाधि में समय की सामान्य अनुभूति नहीं होती, व्यक्ति समय के प्रभाव से मुक्त होता है।
  • प्रश्न: समाधि और निद्रा में क्या अंतर है?
    उत्तर: समाधि में व्यक्ति पूर्ण चेतना में होता है, जबकि निद्रा में चेतना निष्क्रिय होती है।
  • प्रश्न: समाधि का योग में क्या महत्व है?
    उत्तर: समाधि योग का अंतिम लक्ष्य है, जो आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक मुक्ति की ओर ले जाता है।

 

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