पांच प्राण

भारतीय योग शास्त्र में पांच प्राण एक महत्वपूर्ण तत्व है। प्राण जीवन की बुनियादी ऊर्जा है। जब हमारे शरीर में प्राण संतुलित रहता है, हम शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य में रहते हैं। प्राणायाम और योग जैसे अभ्यास से हम प्राण को संतुलित और शुद्ध रख सकते हैं।

  • प्राण (Prana)
  • अपान (Apana)
  • समान (Samana)
  • उदान प्राण (Udana)
  • व्यान प्राण (Vyana)

चलिए, इस पर विस्तार से चर्चा करते हैं:-

1). प्राण (Prana): प्राण शब्द का साधारण अर्थ है ‘जीवन शक्ति‘ या ‘मूल ऊर्जा‘। यह वह ऊर्जा है जो हमें जीवंत रखती है और हमारे शरीर, मन और आत्मा में संचारित होती है। प्राण हमारे जीवन की मूल शक्ति है। यदि प्राण की संचार में अवरोध होता है, तो व्यक्ति शारीरिक, मानसिक या आध्यात्मिक रूप से असंतुलित हो सकता है। कई बार प्राण को हमारे श्वास से जोड़ा जाता है, लेकिन यह श्वास से अधिक है। जब हम प्राणायाम करते हैं, हम श्वास के माध्यम से प्राण को नियंत्रित और बढ़ावा देते हैं, लेकिन प्राण सभी जीवन प्रक्रियाओं में समाहित है। प्राण हमारे शरीर में नाड़ीयों (विशेष प्रकार की ऊर्जा नलिकाएँ) के माध्यम से प्रवाहित होता है। सबसे प्रमुख नाड़ी है सुषुम्णा, जो हमारी रीढ़ के स्तंभ के अंदर चलती है।

हम लोग जो सांस लेते हैं वो प्राण का एक स्थूल रूप है। इसी स्थूल रूप के कारण ही हमारे शरीर की पूरी क्रियाएं चल रही हैं। हमारी कोशिकाओं तक ठीक प्रकार से ऑक्सीजन पहुँच रही है और हम जीवित हैं। अगर प्राण को रोक दिया जाए तो कुछ ही समय मैं हमारी मृत्यु हो जाएगी, यह हमारे शरीर के लिए अनिवार्य है। प्राण का सूक्षम रूप जो है वो भावनात्मक नियंत्रण और अभिव्यक्ति के लिए उत्तरदाई है। हमारे शरीर मैं पुरे सात चक्कर होते हैं और प्राण जो है वो हमारे अनाहत चक्कर को प्रभावित करता है। इसलिए इस प्राण को संतुलित रखना बहुत जरुरी है।

पांच प्राण

2). अपान (Apana): अपान प्राण भारतीय योग और आयुर्वेद में उल्लेखित जीवन ऊर्जा या प्राणिक ऊर्जा की एक महत्वपूर्ण शाखा है। प्राण की पांच मुख्य शाखाओं में से अपान प्राण एक है, जो मुख्य रूप से शरीर के निचले हिस्से, विशेषकर पेल्विक और पायु क्षेत्र में सक्रिय होता है। अपान प्राण मुख्य रूप से निष्कासन संबंधित प्रक्रियाओं में भाग लेता है। यह शरीर से मल और मूत्र का निष्कासन में सहायक होता है। यह प्रजनन प्रक्रियाओं में भी भूमिका निभाता है, जैसे अंडाणु और आंदाणु की गति में सहायक होना। अपान प्राण के संतुलित होने से शरीर की निष्कासन प्रक्रिया सही रहती है, जिससे शरीर में अनावश्यक पदार्थों का संचय नहीं होता। इससे अनेक रोग और समस्याएँ दूर रहती हैं। अपान प्राण का संतुलन और शुद्धिकरण आध्यात्मिक प्रक्रिया में भी महत्वपूर्ण है। अपान प्राण के संतुलन से मूलाधार चक्र की शक्तियाँ जाग्रत होती हैं।

अपान का जो स्थान होता है वो नाभि के मूल से ले कर मूलाधार चक्र तक होता है। सावधिष्टान चक्र भी अपान के अंतर्गत आता है। स्थूल रूप पर अपान जो है वो निष्काशन के काम आता है और सूक्षम रूप मैं अपान भावनात्मक रूप से प्रभावित करता है। योग, प्राणायाम और आयुर्वेदिक चिकित्सा से अपान प्राण को संतुलित और शुद्ध किया जा सकता है। मूलबंध और अश्विनी मुद्रा जैसे योगिक अभ्यास अपान प्राण को सक्रिय और संतुलित करने में मददगार होते हैं।

3). समान (Samana): समान प्राण, भारतीय योग और आयुर्वेद शास्त्र में वर्णित प्राणिक ऊर्जा की पांच मुख्य शाखाओं में से एक है। इसका प्रमुख क्षेत्र शरीर के मध्य भाग, विशेष रूप से आमाशय क्षेत्र है। समान प्राण मुख्य रूप से पाचन प्रक्रिया को संचालित करने में भूमिका निभाता है। यह आहार को पाचन में मदद करता है और पोषण के तत्वों को अलग करता है। समान प्राण शरीर में उत्पन्न होने वाली ऊर्जा का संचारण और वितरण में भी सहायक है।

पाचन प्रक्रिया के माध्यम से हमें हमारे खाद्य से ऊर्जा मिलती है, जो हमें जीवन जीने के लिए आवश्यक है। समान प्राण का संतुलित होना हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। पाचन और ऊर्जा का संचारण हमारे आध्यात्मिक ग्रोथ में भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमें प्राणिक ऊर्जा प्रदान करता है जो हमें ध्यान, प्राणायाम और अन्य आध्यात्मिक प्रक्रियाओं में सहायक होता है।

समान प्राण जो है वो हमारे शरीर के मधय पठ से लेकर नाभि तक आता है और मणिपुर चक्र भी इसी मैं आता है। समान प्राण जो है वो प्राण और अपान को मिलाने का काम करता है। योग, प्राणायाम और आयुर्वेदिक उपायों से समान प्राण को संतुलित और शुद्ध किया जा सकता है। प्राणायाम जैसे अनुलोम-विलोम और भस्त्रिका इस प्राण को सक्रिय और संतुलित रखने में मददगार साबित होते हैं।

4). उदान प्राण (Udana): उदान प्राण, भारतीय योग और आयुर्वेद शास्त्र में वर्णित प्राणिक ऊर्जा की पांच मुख्य शाखाओं में से एक है। यह शरीर के ऊपरी हिस्से, विशेष रूप से कंठ तक और सिर में प्रबलता से सक्रिय रहता है। उदान प्राण जो है वो हमारी इन्द्रियों जैसे आँख, कान, नाक, मुख, जीभ और हमारी कर्म इन्द्रियां जैसे हाथ, पैर को भी संचालित करता है। यह हमारे गर्दन से ले कर सहस्रार चक्र तक सक्रिय रहता है।  जिस योगी का उदान प्राण पर नियंत्रण हो जाता है उसका शरीर बहुत हल्का हो जाता है।

उदान प्राण वाणी और आवाज़ को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसकी उपस्थिति से ही हम बात कर पाते हैं। यह नेत्र (आंखों) और श्रवण (कान) संस्थानों के कार्य में भी प्रतिष्ठित है। उदान प्राण का संतुलन हमें जागरूक और सजीव बनाए रखता है। इसकी उपस्थिति हमें संवेदनशीलता, सोच और अनुभव की क्षमता प्रदान करती है। उदान प्राण व्यक्ति को उच्च अध्यात्मिक स्तर तक पहुँचाने में मदद करता है, जब व्यक्ति समाधि या उच्च ध्यान की अवस्था में होता है।

योग, प्राणायाम और आयुर्वेदिक उपायों से उदान प्राण को संतुलित और शुद्ध किया जा सकता है। जैसे कि उच्चारण के साथ मंत्र जप, भ्रामरी प्राणायाम और अन्य गले संबंधित प्राणायाम उदान प्राण को सक्रिय और संतुलित रखने में मददगार होते हैं।

5). व्यान प्राण (Vyana): व्यान प्राण, भारतीय योग और आयुर्वेद शास्त्र में वर्णित प्राणिक ऊर्जा की पांच मुख्य शाखाओं में से एक है। यह प्राण पूरे शरीर में वितृत होता है और शरीर के सभी अंगों और प्राणों को एक साथ जोड़ता है। व्यान प्राण शरीर में ऊर्जा के संचारण और वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह ऊर्जा को हर कोणे में पहुंचाता है। यह प्राण शरीर के विभिन्न हिस्सों के बीच संचार और समन्वय की प्रक्रिया में मदद करता है, जैसे की रक्त संचारण में।

हमारे शरीर मैं जहाँ पर भी आकाश तत्व है मतलब जहाँ पर भी खाली स्थान है वहां पर भी व्यान प्राण रहता है। यह एक तरह से ऊर्जा भण्डारण का कार्य भी करता है। जैसे हमारे मोबाइल फ़ोन मैं बैटरी होती है जो फ़ोन को ऊर्जा देती है उसकी प्रकार हमारे शरीर मैं व्यान प्राण होती है जो शरीर को ऊर्जा देती है।

व्यान प्राण की उपस्थिति और सक्रियता के बिना, शरीर के अलग-अलग भाग ठीक से काम नहीं कर पाएंगे। यह हमारे शारीरिक संरचना और कार्य में संघटनात्मकता और संतुलन लाता है। व्यान प्राण शरीर में हार्मोनों के संचारण में भी योगदान करता है, जो विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं। योग, प्राणायाम और आयुर्वेदिक उपायों से व्यान प्राण को संतुलित और शुद्ध किया जा सकता है। विशेष रूप से प्राणायाम जैसे कि अनुलोम-विलोम और कपालभाति इस प्राण को संतुलित और सक्रिय रखने में मददगार होते हैं।

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