हिन्दू पौराणिक कथाओं में नाभि रहस्य का बहुत महत्व है। यह न केवल सृष्टि के उद्गम का प्रतीक है, बल्कि अधर्म के अंत का भी संकेत है। नाभि से जुड़े हिन्दू धर्म में दो प्रमुख प्रसंग हैं – एक तरफ ब्रह्मांड की उत्पत्ति और दूसरी तरफ लंकापति रावण की मृत्यु। आइये इस पोस्ट में दोनों के बारे में समझते हैं –
ब्रह्मांड की उत्पत्ति
“ब्रह्मांड की उत्पत्ति भगवान विष्णु की नाभि से हुई थी” – यह विचार हिन्दू पौराणिक कथाओं से आता है, जिसमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति का वर्णन एक अत्यंत रूपक और सांकेतिक तरीके से किया गया है। हिन्दू धर्म में, भगवान विष्णु को संरक्षण और पालनहार के रूप में माना जाता है। वे अक्सर शेषनाग के ऊपर विश्राम करते हुए और अनंत जल में तैरते हुए दर्शाए जाते हैं। राणों के अनुसार, एक बार जब विष्णु भगवान् योगनिद्रा में थे, तब उनकी नाभि से एक कमल प्रकट हुआ। इस कमल से ब्रह्मा भगवान्, सृष्टि के रचयिता, उत्पन्न हुए।
ब्रह्मा जी ने इस कमल से उत्पन्न होकर ब्रह्मांड की रचना की। यह ब्रह्मांड की उत्पत्ति का प्रतीकात्मक वर्णन है, जिसमें विष्णु को सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान शक्ति के रूप में दर्शाया गया है। इस प्रकार, भगवान विष्णु की नाभि से ब्रह्मांड की उत्पत्ति का वर्णन हिन्दू पौराणिक कथाओं में जीवन, सृष्टि, और दैवीय शक्ति के गहरे दार्शनिक अर्थों को प्रकट करता है।
रावण की मृत्यु
रावण की मृत्यु हिन्दू महाकाव्य ‘रामायण’ में एक महत्वपूर्ण और नाटकीय घटना है। रावण, लंका का राजा, एक महान विद्वान और शिव भक्त था, लेकिन उसका अहंकार और अधर्मी कृत्य, विशेष रूप से सीता का अपहरण, उसकी मृत्यु का कारण बना। रामायण के अनुसार, सीता के अपहरण के बाद, राम ने लंका पर चढ़ाई की। इसके बाद लंका में राम और रावण के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ।
रावण को ब्रह्मा द्वारा वरदान प्राप्त था, जिसके कारण वह अमर था। उसकी नाभि में अमृत कुंडली थी, जिसके कारण वह मर नहीं सकता था। युद्ध के दौरान विभीषण ने राम को बताया कि रावण की नाभि में अमृत कुंडली है, जिसके कारण वह अजेय है। तब राम ने रावण की नाभि पर ब्रह्मास्त्र से प्रहार किया, जिससे रावण की मृत्यु हुई। रावण की मृत्यु के बाद, राम ने विभीषण को लंका का राजा बनाया। रावण की मृत्यु को अहंकार और अधर्म के विनाश के रूप में देखा जाता है।
सारांश
नाभि का यह दोहरा प्रतीकवाद – एक तरफ जीवन के उद्गम का स्रोत और दूसरी तरफ अधर्म के अंत का केंद्र – हमें दिखाता है कि कैसे जीवन और मृत्यु, सृजन और विनाश, एक ही चक्र के अंग हैं। यह हमें यह भी बताता है कि कैसे अहंकार और अधर्म अंततः विनाश को प्राप्त होते हैं, जबकि धर्म और सत्य की सदैव जीत होती है। इस प्रकार, नाभि के इस प्रतीकवाद में जीवन के गहरे और व्यापक दर्शन निहित हैं।
नाभि रहस्य से संबंधित प्रश्नोत्तरी
प्रश्न: हिन्दू धर्म के अनुसार, ब्रह्मांड की उत्पत्ति किसकी नाभि से हुई थी?
उत्तर: भगवान विष्णु की नाभि से।
प्रश्न: भगवान विष्णु की नाभि से कौन सा देवता उत्पन्न हुआ था?
उत्तर: ब्रह्मा।
प्रश्न: रामायण में रावण की मृत्यु किस प्रकार हुई थी?
उत्तर: श्री राम द्वारा उनकी नाभि में बाण मारे जाने से।
प्रश्न: रावण की नाभि में क्या था, जिससे वह अजेय बना रहता था?
उत्तर: अमृत कुंडली।
प्रश्न: ब्रह्मा को किस फूल से उत्पन्न माना जाता है?
उत्तर: कमल के फूल से।
प्रश्न: रामायण में, रावण की मृत्यु के बाद लंका का राजा कौन बना?
उत्तर: विभीषण।
प्रश्न: हिन्दू धर्म में नाभि का क्या महत्व है?
उत्तर: नाभि को सृष्टि के उद्गम और जीवन के केंद्र बिंदु के रूप में माना जाता है।
प्रश्न: रावण की मृत्यु किस युद्ध में हुई थी?
उत्तर: लंका युद्ध में।
प्रश्न: विष्णु की नाभि से उत्पन्न होने वाले कमल पर ब्रह्मा के कितने सिर थे?
उत्तर: चार।
प्रश्न: रावण की मृत्यु का त्योहार क्या कहलाता है?
उत्तर: दशहरा।
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