“देव दीपावली” भारतीय हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला एक विशेष त्योहार है, जिसका आयोजन कार्तिक पूर्णिमा के दिन होता है, जो कि दिवाली के लगभग पंद्रह दिन बाद आता है। इसे “देवों की दीपावली” के रूप में भी जाना जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से वाराणसी (बनारस) में बहुत ही भव्य और आध्यात्मिक तरीके से मनाया जाता है, हालांकि यह अन्य भागों में भी मनाया जाता है।
देव दीपावली हिन्दू कैलेंडर के कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस दिन, विशेष रूप से गंगा घाटों पर, हजारों दीपक जलाए जाते हैं, जिससे पूरा घाट दीपों की रोशनी से जगमगा उठता है। इसे देवताओं द्वारा महादेव शिव की विजय का उत्सव माना जाता है। कहा जाता है कि देवता इस दिन स्वर्ग से उतरकर गंगा स्नान करते हैं।वाराणसी में देव दीपावली का उत्सव विशेष रूप से भव्य होता है। गंगा आरती, सांस्कृतिक कार्यक्रम, और दीपमाला के साथ यह उत्सव मनाया जाता है।
यह त्योहार पौराणिक कथाओं से जुड़ा है और इसे देवताओं द्वारा त्रिपुरासुर के वध के उपलक्ष्य में मनाया जाने का भी मान्यता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान, दान, और यज्ञ का भी विशेष महत्व होता है। देव दीपावली का उत्सव भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिकता, परंपरा, और धार्मिक उत्सवों की भव्यता का प्रतीक है। इस दिन लाखों दीपकों की रोशनी से नदी के घाट और मंदिर जगमगा उठते हैं, जो दर्शकों के लिए एक अद्भुत और अविस्मरणीय दृश्य प्रस्तुत करते हैं।
त्रिपुरासुर के वध की कथा
देव दीपावली को देवताओं द्वारा महादेव शिव की विजय का उत्सव माना जाने के पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसे समझने के लिए हमें हिन्दू पुराणों में वर्णित त्रिपुरासुर के वध की कथा की ओर देखना होगा।
पुराणों के अनुसार, तीन असुर भाइयों – तारकाक्ष, कमलाक्ष, और विद्युन्माली ने तपस्या करके ब्रह्मा जी से तीन अजेय दुर्गों – त्रिपुर का वरदान प्राप्त किया। ये तीनों दुर्ग सोने, चांदी और लोहे से बने थे और आकाश में स्थित थे। इन दुर्गों के प्राप्त होने के बाद, त्रिपुरासुर अत्यंत शक्तिशाली हो गए और उन्होंने देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। देवताओं ने इस संकट से उबरने के लिए भगवान शिव की सहायता मांगी। शिव ने एक विशेष रथ, धनुष और बाण का निर्माण किया। जब तीनों दुर्ग एक सीध में आए, भगवान शिव ने एक ही बाण से तीनों दुर्गों को नष्ट कर दिया, जिससे त्रिपुरासुर का अंत हुआ।
इस विजय की खुशी में देवताओं ने दीपावली मनाई। यह माना जाता है कि देवता इस दिन पृथ्वी पर आते हैं और गंगा स्नान करते हैं। इसलिए, देव दीपावली को कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो त्रिपुरासुर के वध और भगवान शिव की विजय की स्मृति का प्रतीक है। इस दिन देवताओं के सम्मान में दीपक जलाकर और विशेष पूजा-अर्चना करके उनकी विजय का उत्सव मनाया जाता है।
क्या देव दीपावली को गुप्त दीपावली भी कहते हैं ?
नहीं, देव दीपावली और गुप्त दीपावली दो अलग-अलग उत्सव हैं। ये दोनों हिन्दू धर्म में मनाए जाने वाले त्योहार हैं लेकिन उनकी पृष्ठभूमि, महत्व और आयोजन का तरीका अलग होता है। देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा को मनाई जाती है, जो दिवाली के लगभग पंद्रह दिन बाद आती है। इस त्योहार को देवताओं की दीपावली माना जाता है और इसे विशेष रूप से वाराणसी में गंगा घाटों पर भव्य रूप से मनाया जाता है।
वहीँ गुप्त दीपावली आषाढ़ अमावस्या को मनाई जाती है, जो आम तौर पर जुलाई या अगस्त महीने में आती है। यह त्योहार विशेष रूप से उत्तराखंड में मनाया जाता है और इसका संबंध गुप्त रूप से दीपावली मनाने की परंपरा से है। इसमें घरों और मंदिरों में दीपक जलाए जाते हैं।
इस प्रकार, देव दीपावली और गुप्त दीपावली दोनों अलग-अलग पर्व हैं और उनका अलग-अलग महत्व और परंपराएँ हैं।
देव दीपावली और सामान्य दीपावली में क्या अंतर है?
देव दीपावली और सामान्य दीपावली दोनों हिन्दू धर्म में मनाए जाने वाले त्योहार हैं, लेकिन दोनों का उत्सव, महत्व और मनाने का समय अलग-अलग है। सामान्य दीपावली हिन्दू कैलेंडर के कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है, जो आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर में पड़ती है। ह त्योहार अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। इसे श्री राम के लंका पर विजय प्राप्त करके अयोध्या लौटने के सम्मान में भी मनाया जाता है। दीपावली के दौरान घरों की सजावट, दीपक जलाना, पूजा-अर्चना, नए वस्त्र पहनना, मिठाइयाँ बांटना और पटाखे फोड़ना शामिल हैं।
देव दीपावली हिन्दू कैलेंडर के कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, जो दिवाली के लगभग पंद्रह दिन बाद आती है। इसे “देवों की दीपावली” कहा जाता है। यह उत्सव देवताओं द्वारा त्रिपुरासुर के वध के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। देव दीपावली के दौरान विशेष रूप से वाराणसी में गंगा घाटों पर लाखों दीपक जलाए जाते हैं। इसमें भव्य गंगा आरती और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं।
दोनों उत्सवों में दीपकों का बहुत महत्व है, लेकिन उनके मनाने के तरीके और उनके पीछे की कथाएँ अलग-अलग हैं।
देव दीपावली 2023
देव दीपावली का पर्व कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार इस साल 26 नवंबर को कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि है, इसलिए देव दीपावली का पर्व इस साल 26 नवंबर को मनाया जाएगा।
26 नवंबर को देव दीपावली वाले दिन शाम के समय यानी प्रदोष काल में 5 बजकर 8 मिनट से 7 बजकर 47 मिनट तक देव दीपावली मनाने का शुभ मुहूर्त है। इस दिन शाम के समय 11, 21, 51, 108 आटे के दीये बनाकर उनमें तेल डालें और किसी नदी के किनारे प्रज्वलित करके अर्पित करें।
देव दीपावली 2024
पंचांग के अनुसार 2024 साल मैं यह शुक्रवार, नवम्बर 15, 2024 को मनाई जायेगी।
देव दीपावली से संबंधित प्रश्नोत्तरी
- देव दीपावली कब मनाई जाती है?
- कार्तिक पूर्णिमा को।
- देव दीपावली का मुख्य आयोजन कहाँ होता है?
- वाराणसी में।
- देव दीपावली क्यों मनाई जाती है?
- यह देवताओं द्वारा विजय का उत्सव माना जाता है।
- देव दीपावली पर क्या विशेष कार्यक्रम होता है?
- गंगा घाटों पर लाखों दीपक जलाए जाते हैं।
- देव दीपावली और सामान्य दीपावली में क्या अंतर है?
- देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा को और दीपावली अमावस्या को मनाई जाती है।
- क्या देव दीपावली का पौराणिक संबंध है?
- हाँ, इसे देवताओं की विजय और उनके स्वर्ग में लौटने का उत्सव माना जाता है।
- देव दीपावली पर कौन सी गतिविधियाँ होती हैं?
- दीपमाला, गंगा आरती, और सांस्कृतिक कार्यक्रम।
- क्या देव दीपावली पर विशेष पूजा होती है?
- हाँ, गंगा पूजा और अन्य धार्मिक अनुष्ठान होते हैं।
- देव दीपावली पर कौन से देवता की पूजा होती है?
- विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा होती है।
- देव दीपावली का सामाजिक महत्व क्या है?
- यह समाज में एकता और सांस्कृतिक विरासत का प्रदर्शन करता है।
- देव दीपावली के दौरान वाराणसी में कौन सी विशेष चीज देखने को मिलती है?
- गंगा घाटों पर दीपों की रोशनी और आरती।
- क्या देव दीपावली पर तीर्थ स्नान का महत्व है?
- हाँ, कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है।
- देव दीपावली को और किस नाम से जाना जाता है?
- कार्तिक पूर्णिमा या देवताओं की दीपावली।
- देव दीपावली का उत्सव कितने दिनों तक चलता है?
- यह मुख्य रूप से एक दिन का उत्सव है।
- देव दीपावली के दिन क्या विशेष भोजन बनाया जाता है?
- विशेष भोजन की कोई निश्चित परंपरा नहीं है, लेकिन लोग त्योहारी व्यंजन बनाते हैं।
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