हनुमान जी के पुत्र, मकरध्वज की कथा हिन्दू पौराणिक कथाओं में एक दिलचस्प और अनूठी कहानी है। यह कहानी रामायण के पातालखण्ड में मिलती है और कई लोककथाओं में भी इसका उल्लेख होता है।
मकरध्वज का जन्म कैसे हुआ?
मकरध्वज के जन्म की कथा उस समय शुरू होती है जब हनुमान जी लंका में सीता माता की खोज कर रहे थे। उसी समय मेघनाथ ने हनुमान जी को पकड़ लिया और रावण के सामने पेश किया गया और रावण ने उनकी पूँछ में आग लगवा दी थी। उसके बाद हनुमान जी ने उसी जलती हुई पूँछ से रावण की लंका में आग लगा दी थी। लंका जलाने के बाद अपनी पूँछ की आग को बुझाने के लिए हनुमान जी समुंदर में कूदने ही वाले थे की उनके शरीर से पसीने की एक बूँद जा कर समुंदर में गिर गई और उसको एक मकर (मछली) ने निगल लिया और वह गर्भवती हो गई थी।
जब वह मछली तैरती हुई पातळ लोक पहुंची तो वहां असुर अहिरावण के सेवकों ने उस मछली को पकड़ा और उसको पकाने के लिए जैसे ही उसका पेट चीरा तो उसके अंदर से एक शिशु निकला जिसका आधा तन एक वानर का था और आधा तन मछली का था। मछली के पेट से निकलने के कारण ही उसका नाम ‘मकरध्वज‘ रखा गया।
मकरध्वज का पालन-पोषण किसने किया ?
मकरध्वज को पाताल लोक के राजा अहिरावण ने पाला-पोसा था। अहिरावण, जो कि राक्षस राजा थे, ने मकरध्वज को अपनी संतान के समान माना और उन्हें सभी युद्ध कलाओं और राज्य के कार्यों में निपुण बनाया। मकरध्वज को असाधारण शक्तियां प्राप्त थीं, जो उन्हें उनके पिता हनुमान जी से विरासत में मिली थीं। वे बलवान, पराक्रमी और युद्ध में निपुण थे। मकरध्वज को पाताल लोक का पहरेदार बनाया गया था, जहाँ उन्होंने अहिरावण के लिए कई युद्धों में भाग लिया और अपनी शक्ति और वीरता का प्रदर्शन किया।
हनुमान जी से पहली मुलाकात
मकरध्वज की पहली मुलाकात हनुमान जी से तब हुई जब रामायण के युद्ध के दौरान, राक्षस राज अहिरावण ने भगवान राम और लक्ष्मण को पाताल लोक में बंदी बना लिया था। हनुमान जी राम और लक्ष्मण को बचाने के लिए पाताल लोक पहुंचे। मकरध्वज पाताल लोक के आखरी प्रवेश द्वार पर पहरेदार के रूप में तैनात थे। वे अहिरावण के आज्ञाकारी सेवक थे। जब हनुमान जी पाताल लोक के आखरी द्वार पर पहुंचे, तो मकरध्वज ने उन्हें रोका। इसके बाद दोनों के बीच एक युद्ध हुआ। युद्ध के दौरान ही हनुमान जी को पता चला कि मकरध्वज उनके पुत्र हैं। हनुमान जी ने मकरध्वज की वीरता और पराक्रम की प्रशंसा की और उन्हें गले से लगाकर अपना आश्रीवाद दिया।
मकरध्वज की कथा का महत्व
मकरध्वज की कथा हिन्दू पौराणिक कथाओं में भक्ति, शक्ति, और धर्म के महत्वपूर्ण संदेशों को सामने लाती है। इस कथा में धर्म के प्रति निष्ठा, पिता और पुत्र के बीच के संबंध, और युद्ध के मैदान में धर्म और कर्तव्य के प्रति समर्पण को दर्शाया गया है। मकरध्वज की कहानी अनेक सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में विशेष स्थान रखती है और यह हमें यह दिखाती है कि भक्ति और शक्ति के मार्ग पर चलने वाले हर व्यक्ति का आदर और सम्मान होना चाहिए।
मकरध्वज से संबंधित प्रश्नोत्तरी
- मकरध्वज किसके पुत्र थे?
- हनुमान जी
- मकरध्वज का जन्म कैसे हुआ था?
- हनुमान जी के पसीने की एक बूंद से
- मकरध्वज का पालन-पोषण किसने किया था?
- अहिरावण
- मकरध्वज को पहली बार हनुमान जी से कहां मिलना हुआ था?
- पाताल लोक के आखरी प्रवेश द्वार पर
- मकरध्वज ने किसके लिए पाताल लोक के द्वार की रक्षा की थी?
- अहिरावण
- हनुमान जी और मकरध्वज के बीच कौन सा युद्ध हुआ था?
- पाताल लोक के आखरी प्रवेश द्वार पर
- हनुमान जी ने मकरध्वज के साथ किस तरह का संबंध स्थापित किया?
- पिता-पुत्र का संबंध
- मकरध्वज की शक्तियां किससे प्राप्त हुई थीं?
- हनुमान जी
- रामायण में मकरध्वज की भूमिका क्या थी?
- पाताल लोक के पहरेदार
- मकरध्वज का मकर से क्या संबंध था?
- उनका जन्म मकर से जुड़ा था
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