हिन्दू धर्म में ‘अष्ट चिरंजीवी‘ उन आठ अमर पुरुषों को कहा जाता है, जिन्हें विभिन्न कारणों से अमरता प्राप्त हुई है। ये पुरुष समय के साथ नहीं बदलते और उन्हें भगवान द्वारा विशेष आशीर्वाद प्राप्त है। हिंदू धर्म की पुराणिक कहानियों के अनुसार, 8 चिरंजीवी ऐसे हैं जो सारे युगों में अमर हैं और कलियुग में भी अमर रहेंगें। मान्यताओं के अनुसार उनका अस्तित्व पृथ्वी के अंत तक रहने वाला है। इनकी कथाएँ भारतीय पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों में प्रमुखता से उल्लेखित हैं।
तो आइये समझते है की यह अष्ट चिरंजीवी कौन हैं ?
हनुमान जी
हनुमान जी, जो अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं, हिन्दू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पूजनीय देवता हैं। हनुमान की कथा मुख्य रूप से रामायण में वर्णित है, जहाँ वे भगवान राम के परम भक्त के रूप में प्रकट होते हैं। हनुमान जी का जन्म अंजना और केसरी के पुत्र के रूप में हुआ था। वायु देवता उनके दिव्य पिता माने जाते हैं। बचपन से ही हनुमान जी में अद्भुत शक्तियाँ और विशेष गुण थे।
रामायण महापुराण के अनुसार, हनुमान जी की मुलाकात वनवास के दौरान श्री राम से हुई। वे श्री राम के परम भक्त बन गए और उनके साथ सीता माता की खोज में उनकी सहायता की। हनुमान जी अपनी असीम शक्ति, बल, और भक्ति के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अनेक चमत्कारी कार्य किए जैसे लंका दहन, संजीवनी बूटी लाना आदि। हनुमान जी को उनकी अद्भुत भक्ति और सेवा के लिए श्री राम से अमरता का वरदान मिला। यह माना जाता है कि वे कलयुग में भी जीवित हैं और भक्तों की रक्षा करते हैं।
हनुमान जी को शक्ति, भक्ति, विनम्रता, और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। उनकी पूजा से भक्तों को शक्ति, साहस और संकटों से मुक्ति की प्राप्ति होती है। हनुमान जी की ये कथाएँ और उनका जीवन हमें निस्वार्थ भक्ति, सेवा और साहस की प्रेरणा देता है। वे हिन्दू धर्म में एक आदर्श और पूजनीय चरित्र हैं, जिनकी भक्ति और शक्ति के दर्शन आज भी हमारे समाज में प्रासंगिक हैं।
राजा बलि
‘राजा बलि‘ हिन्दू धर्म के अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं और उनकी कथा विशेष रूप से भगवान विष्णु के वामन अवतार से संबंधित है। बलि की कथा हिन्दू धर्मग्रंथों में प्रमुखता से उल्लेखित है और इसमें उनकी दानशीलता और भक्ति की महत्ता का वर्णन किया गया है।
राजा बलि, दैत्यराज प्रह्लाद के पौत्र और विरोचन के पुत्र थे। वे असुरों के राजा थे, परंतु उनकी धार्मिकता और दानशीलता के लिए प्रसिद्ध थे। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और बलि से तीन पग भूमि का दान मांगा। बलि ने बिना संकोच के यह दान देना स्वीकार किया। जब वामन ने अपने दो पगों में सारे लोकों को नाप लिया, तो बलि ने अपना सिर तीसरे पग के लिए प्रस्तुत किया। इस पर विष्णु प्रसन्न हुए और बलि को अमरता का वरदान दिया।
बलि की दानशीलता और उनकी भक्ति की कथा हिन्दू धर्म में बहुत प्रसिद्ध है। उन्होंने अपने राज्य और सम्पूर्ण धरती का दान देने में कोई संकोच नहीं किया। बलि की कथा हमें निस्वार्थ भक्ति, दानशीलता और सच्चाई का महत्व सिखाती है। उनकी आस्था और उनके कर्मों की वजह से उन्हें अमरता का वरदान मिला। बलि की ये कथाएँ और उनका जीवन हमें धर्म के प्रति समर्पण और निष्ठा की प्रेरणा देते हैं। वे हिन्दू धर्म के एक अनोखे और आदर्श चरित्र हैं, जिनकी कथाएँ सदाचार और नैतिकता का मार्ग दिखाती हैं।
महर्षि वेदव्यास
‘व्यास’, जिन्हें महर्षि वेदव्यास भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण ऋषि और विद्वान हैं। उन्हें अष्ट चिरंजीवियों में से एक माना जाता है और वे हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के महान रचयिता हैं।
महर्षि वेदव्यास का जन्म संत पराशर और मत्स्यगंधा (सत्यवती) से हुआ था। उनका वास्तविक नाम ‘कृष्ण द्वैपायन’ था, और वे द्वैपायन द्वीप पर जन्मे थे। महर्षि वेदव्यास को वेदों के विभाजन का श्रेय जाता है। उन्होंने एक वेद को चार भागों – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में विभाजित किया, जिससे इसका अध्ययन और समझना सरल हो गया। महर्षि वेदव्यास को महाभारत का रचयिता माना जाता है, जो हिन्दू धर्म का एक महान एपिक है।
इसमें भारतीय इतिहास, धर्म, नीति और जीवन के सभी पहलुओं का वर्णन है। महर्षि वेदव्यास ने 18 पुराणों की भी रचना की, जो हिन्दू धर्म के धार्मिक और फिलोसोफिकल विचारों को प्रस्तुत करते हैं। महर्षि वेदव्यास को उनके विद्वता और ज्ञान के लिए अमरता का वरदान प्राप्त है। उनकी रचनाएं और शिक्षाएं भारतीय संस्कृति और धर्म के लिए अमूल्य हैं। महर्षि वेदव्यास का जीवन और कार्य हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उनके द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन और शिक्षाएं आज भी विश्व भर में प्रासंगिक हैं और अनेक लोगों को प्रेरणा और ज्ञान का मार्ग दिखाती हैं।
अश्वत्थामा
‘‘अश्वत्थामा‘, हिन्दू धर्म के अष्ट चिरंजीवियों में से एक, महाभारत के महत्वपूर्ण पात्रों में से एक हैं। उनका जीवन और कथा अनेक धार्मिक और नैतिक शिक्षाओं से भरी हुई है। , हिन्दू धर्म के अष्ट चिरंजीवियों में से एक, महाभारत के महत्वपूर्ण पात्रों में से एक हैं। उनका जीवन और कथा अनेक धार्मिक और नैतिक शिक्षाओं से भरी हुई है।
अश्वत्थामा द्रोणाचार्य और कृपी के पुत्र थे। उनके पिता, द्रोणाचार्य, पांडव और कौरवों के गुरु थे। अश्वत्थामा का जन्म दिव्य शक्तियों के साथ हुआ था। अश्वत्थामा ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से भाग लिया। वे एक महान योद्धा और शक्तिशाली धनुर्धर थे। युद्ध के अंत में, अश्वत्थामा ने उपापावृत्ति से पांडवों के पुत्रों का वध किया। इस कृत्य के लिए उन्हें श्री कृष्ण ने श्राप दिया कि वे अनंत काल तक जीवित रहेंगे और पृथ्वी पर भटकते रहेंगे।
अश्वत्थामा की कथा हमें कर्म और धर्म के सिद्धांतों के महत्व को समझाती है। उनका जीवन यह दर्शाता है कि अनैतिक कर्मों के परिणाम भयानक होते हैं। अश्वत्थामा आज भी हिन्दू धर्म की कथाओं और इतिहास में एक रहस्यमयी और चर्चित पात्र हैं। उनके जीवन की घटनाएँ और उनका चरित्र भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण हैं। अश्वत्थामा की कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में किए गए कर्मों के अनुसार ही परिणाम प्राप्त होते हैं, और धर्म के मार्ग पर चलने की महत्ता होती है। उनका जीवन और कथाएँ आज भी अनेक लोगों के लिए प्रेरणा और शिक्षा का स्रोत हैं।
कृपाचार्य
‘कृपाचार्य‘ हिन्दू धर्म के अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं, और महाभारत के महत्वपूर्ण पात्रों में शामिल हैं। उनकी कथा और जीवन अनेक धार्मिक और नैतिक शिक्षाओं से भरी हुई है।
कृपाचार्य, शरद्वान और जनपदी के पुत्र थे। उनका जन्म एक अद्भुत घटना के फलस्वरूप हुआ था, जिसमें उनके पिता के तीर से उनकी माँ के गर्भ से गिरे होने के बाद भी वे जीवित रहे। कृपाचार्य महाभारत में पांडव और कौरवों के गुरु थे। उन्हें युद्ध और धनुर्विद्या का उत्कृष्ट ज्ञान था। कृपाचार्य को उनकी विद्वता, निष्ठा और धर्म के प्रति समर्पण के कारण अमरता का वरदान प्राप्त हुआ।
उन्हें इस वरदान के कारण अष्ट चिरंजीवियों में गिना जाता है। कृपाचार्य की कथा हमें ज्ञान, शिक्षा, और धर्म के प्रति उत्कृष्ट समर्पण की प्रेरणा देती है। उन्होंने हमेशा धर्म और न्याय के मार्ग को चुना। कृपाचार्य हिन्दू धर्म की कथाओं और इतिहास में एक सम्मानित और प्रेरणादायक पात्र हैं। उनका चरित्र और शिक्षाएं आज भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। कृपाचार्य की कथा और उनके जीवन की घटनाएँ हमें यह सिखाती हैं कि ज्ञान, धर्म, और शिक्षा के प्रति समर्पण हमें आध्यात्मिक और नैतिक उन्नति के मार्ग पर ले जाता है। उनका जीवन और शिक्षाएं आज भी अनेक लोगों के लिए प्रेरणा और शिक्षा का स्रोत हैं।
परशुराम
‘परशुराम’, हिन्दू धर्म के अष्ट चिरंजीवियों में से एक, भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनकी कथा में उनकी शक्ति, तपस्या और धर्म के प्रति समर्पण का वर्णन है।
परशुराम का जन्म महर्षि जमदग्नि और रेणुका के घर हुआ था। उन्हें ‘राम’ के नाम से भी जाना जाता है, और ‘परशु’ (फरसा) के कारण ‘परशुराम’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। परशुराम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। वे क्रोध और बल के प्रतीक के रूप में भी जाने जाते हैं। परशुराम ने अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए 21 बार पृथ्वी के क्षत्रियों का संहार किया था। उनकी इस कथा में उनकी अपार शक्ति और क्रोध का वर्णन है। परशुराम को उनकी तपस्या और शक्ति के कारण अमरता का वरदान प्राप्त हुआ।
उनकी कथा धर्म और न्याय के प्रति उनके समर्पण को दर्शाती है। परशुराम हिन्दू धर्म की कथाओं में एक रहस्यमयी और शक्तिशाली पात्र के रूप में उल्लिखित हैं। उनका जीवन और कर्म हमें धर्म के प्रति अटूट विश्वास और साहस की प्रेरणा देते हैं। परशुराम की कथा हमें यह सिखाती है कि धर्म के मार्ग पर चलने में कठिनाईयां आ सकती हैं, लेकिन न्याय और सत्य के लिए लड़ना महत्वपूर्ण है। उनका जीवन और कर्म आज भी अनेक लोगों के लिए आध्यात्मिक और नैतिक मार्गदर्शन का स्रोत हैं।
विभीषण
‘विभीषण’, हिन्दू धर्म के अष्ट चिरंजीवियों में से एक, रामायण में एक प्रमुख और अनूठा पात्र हैं। उनकी कथा धर्म और नैतिकता के प्रति उनकी दृढ़ निष्ठा को दर्शाती है।
विभीषण लंका के राजा रावण के छोटे भाई थे। उन्हें अपने बड़े भाई रावण की अनैतिकता और अधर्मी आचरण के लिए हमेशा चिंता रहती थी। विभीषण ने रामायण के युद्ध में श्री राम का साथ दिया और उन्हें लंका विजय में मदद की। उन्होंने राम के धर्म और न्याय के मार्ग का समर्थन किया। विभीषण को उनकी धर्म और नैतिकता के प्रति निष्ठा के लिए अमरता का वरदान प्राप्त हुआ। उन्होंने अपने भाई के विरुद्ध जाकर धर्म का साथ दिया। रामायण के अंत में, राम ने विभीषण को लंका का राजा बनाया। विभीषण ने अपने राज्य में धर्म और न्याय के सिद्धांतों का पालन किया।
विभीषण की कथा हमें यह सिखाती है कि धर्म और सत्य का समर्थन करना, भले ही यह कठिन हो, सदैव उचित होता है। उनकी कथा हमें नैतिकता और अच्छाई के प्रति समर्पण की प्रेरणा देती है। विभीषण की कथा न केवल रामायण की एक महत्वपूर्ण कथा है, बल्कि यह एक ऐसी प्रेरणादायक कथा है जो धर्म और सत्य के प्रति निष्ठा के महत्व को उजागर करती है। विभीषण का चरित्र हमें दिखाता है कि धर्म के मार्ग पर चलकर, भले ही वह कितना भी कठिन क्यों न हो, हमेशा सही रास्ते पर रहना चाहिए।
मार्कण्डेय
‘मार्कण्डेय’ हिन्दू धर्म में एक प्रमुख ऋषि हैं और अष्ट चिरंजीवियों में उनका भी नाम आता है। उनकी कथा अमरता, भक्ति और भगवान शिव के प्रति समर्पण की एक अद्भुत कहानी है।
मार्कण्डेय का जन्म मृकंदु ऋषि और उनकी पत्नी मरुद्वती से हुआ था। उनके जन्म के समय ही भविष्यवाणी हुई थी कि वे केवल सोलह वर्ष की आयु तक ही जीवित रहेंगे। जब मार्कण्डेय को अपनी आयु के बारे में पता चला, तो उन्होंने भगवान शिव की गहन भक्ति और तपस्या आरंभ की। उनकी अटूट भक्ति ने शिव को प्रसन्न किया। जब यमराज उन्हें लेने आए, तो भगवान शिव ने मार्कण्डेय की रक्षा की और उन्हें अमरता का वरदान दिया। इस प्रकार, मार्कण्डेय अनंत काल तक जीवित रहने वाले बन गए। मार्कण्डेय की कथा हमें भक्ति की शक्ति और देवताओं के प्रति सच्ची आस्था का महत्व सिखाती है। उनकी कथा धर्म और आध्यात्मिकता के उन्नत मार्ग को दर्शाती है।
मार्कण्डेय ऋषि हिन्दू धर्म की कथाओं में एक प्रेरणादायक और आदरणीय चरित्र के रूप में उल्लिखित हैं। उनका जीवन और भक्ति की कहानियाँ आज भी अनेक लोगों के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन और प्रेरणा का स्रोत हैं। मार्कण्डेय की कथा हमें यह सिखाती है कि भक्ति और समर्पण के मार्ग पर चलकर, व्यक्ति अपने जीवन में असंभव से प्रतीत होने वाली चुनौतियों को भी पार कर सकता है। उनका जीवन और उनकी शिक्षाएँ आज भी हमें आध्यात्मिक उन्नति और आत्म-साक्षात्कार के पथ पर ले जाने के लिए प्रेरित करती हैं।
अष्ट चिरंजीवी, हिन्दू धर्म के अमर पुरुषों की कथाएँ, हमें जीवन के गहरे अर्थों से परिचित कराती हैं। इनकी कथाओं में निहित शिक्षाएँ और आदर्श आज भी हमारे समाज में प्रासंगिक हैं और हमें धर्म और नैतिकता का पालन करने की प्रेरणा देती हैं। ये अमर पुरुष हिन्दू धर्म की अमूल्य धरोहर हैं और उनकी कथाएँ अनंत काल तक प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी।
अष्ट चिरंजीवी से संबंधित प्रश्नोत्तरी
प्रश्न: अष्ट चिरंजीवियों में प्रथम स्थान पर कौन है?
उत्तर: हनुमान।
प्रश्न: अष्ट चिरंजीवियों में से कौन विष्णु का अवतार है?
उत्तर: परशुराम।
प्रश्न: वेदव्यास किस महाकाव्य के रचयिता हैं?
उत्तर: महाभारत।
प्रश्न: महाभारत में अश्वत्थामा किसके पुत्र थे?
उत्तर: द्रोणाचार्य के।
प्रश्न: कृपाचार्य का राजधर्म के प्रति क्या योगदान था?
उत्तर: वे पांडव और कौरवों के गुरु थे।
प्रश्न: विभीषण किस रामायण के पात्र के भाई थे?
उत्तर: रावण के।
प्रश्न: मार्कण्डेय ऋषि किस देवता की भक्ति में लीन थे?
उत्तर: भगवान शिव।
प्रश्न: बलि को किस अवतार ने अमरता का वरदान दिया?
उत्तर: वामन अवतार (भगवान विष्णु)।
प्रश्न: हनुमान किसके परम भक्त थे?
उत्तर: भगवान राम के।
प्रश्न: परशुराम ने कितनी बार क्षत्रियों का संहार किया?
उत्तर: 21 बार।
प्रश्न: विभीषण ने किस युद्ध में राम का साथ दिया?
उत्तर: राम-रावण युद्ध में।
प्रश्न: अश्वत्थामा को किसने श्राप दिया था?
उत्तर: भगवान श्री कृष्ण।
प्रश्न: मार्कण्डेय ऋषि को किस आयु में अमरता का वरदान मिला?
उत्तर: सोलह वर्ष की आयु में।
प्रश्न: कृपाचार्य महाभारत में किस पक्ष के साथ थे?
उत्तर: कौरवों के साथ।
प्रश्न: बलि किस युग के राजा थे?
उत्तर: त्रेता युग।
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