वेदांत दर्शन

भारतीय दार्शनिक परंपरा में ‘वेदांत दर्शन‘ अपनी गहराई और विचारशीलता के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इसका आधार ‘वेदों’ का उत्तर भाग, अर्थात ‘उपनिषद्’, है। वेदांत शब्द का अर्थ है ‘वेदों का अंत‘, यानी वेदों का सार। इस दर्शन में जीवन, ब्रह्मांड, और आत्मा के संबंधों पर गहराई से चिंतन किया गया है। वेदांत दर्शन के रचयिता के रूप में किसी एकल व्यक्ति की पहचान करना कठिन है, क्योंकि वेदांत दर्शन वैदिक ग्रंथों, विशेषकर उपनिषदों, पर आधारित है। हालांकि, वेदांत दर्शन के प्रमुख व्याख्याताओं में आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, और मध्वाचार्य प्रमुख हैं। इन महान आचार्यों ने वेदांत दर्शन की विभिन्न शाखाओं – अद्वैत, विशिष्टाद्वैत, और द्वैत – का सूत्रपात किया।

वेदांत दर्शन

वेदांत दर्शन के मूल सिद्धांत

वेदांत का सबसे मूलभूत सिद्धांत है ब्रह्म की अवधारणा। ब्रह्म को सर्वोच्च सत्य और चैतन्य के रूप में माना जाता है, जो समस्त जगत का आधार है। वेदांत में आत्मा और ब्रह्म के बीच के संबंध पर गहराई से चिंतन किया गया है। अद्वैत वेदांत में आत्मा और ब्रह्म को एक ही माना जाता है, जबकि द्वैत और विशिष्टाद्वैत में इनके बीच भेद या विशेष संबंध को स्वीकार किया गया है। वेदांत दर्शन में जीवन का उद्देश्य मोक्ष या मुक्ति प्राप्त करना है, जिसका अर्थ है आत्मा का ब्रह्म के साथ एकीकरण या संसार के बंधनों से मुक्ति। इसके मूल सिद्धांतों को समझने से पहले यह जानना महत्वपूर्ण है कि वेदांत विभिन्न आचार्यों द्वारा विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया गया है, जैसे कि अद्वैत, द्वैत, और विशिष्टाद्वैत वेदांत।

  1. अद्वैतवाद
  2. द्वैतवाद
  3. विशिष्टाद्वैतवाद

आइये इनको विस्तार से समझते हैं।

अद्वैतवाद

‘अद्वैतवाद’ भारतीय दर्शन की एक प्रमुख शाखा है, जिसे वेदांत दर्शन के अंतर्गत समझा जाता है। इसका सबसे प्रसिद्ध प्रवर्तक आदि शंकराचार्य थे। ‘अद्वैत’ का अर्थ है ‘दो नहीं’ या ‘नॉन-ड्यूअलिटी’, यानी ऐसा दर्शन जो ब्रह्म और आत्मा के बीच किसी भेद को नहीं मानता। अद्वैतवाद के अनुसार, ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है, जो सर्वव्यापी, चेतन, और अनंत है। ब्रह्म को इस दर्शन में सब कुछ माना जाता है। अद्वैतवाद कहता है कि आत्मा (व्यक्तिगत चेतना) और ब्रह्म (सार्वभौमिक चेतना) एक ही हैं। ‘अहं ब्रह्मास्मि’ (मैं ब्रह्म हूँ) इसका प्रमुख उद्घोष है। अद्वैतवाद में माया एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। माया को एक ऐसी शक्ति माना जाता है जो वास्तविकता को छिपा देती है और ब्रह्म के अलावा जगत के अस्तित्व का भ्रम पैदा करती है। अद्वैतवाद में संसार और जीवन को मिथ्या यानी असत्य माना जाता है, जिसे ब्रह्म की पूर्ण जानकारी से ही पार किया जा सकता है। अद्वैतवाद के अनुसार, मोक्ष या मुक्ति तब होती है जब व्यक्ति अपने आत्मा और ब्रह्म के एकत्व का अनुभव करता है। यह आत्म-ज्ञान के द्वारा प्राप्त होती है। अद्वैतवाद में वेदों की उपनिषदों के रूप में अध्यात्मिक व्याख्या की जाती है, जिसमें आत्म-ज्ञान की महत्ता पर बल दिया जाता है।

अद्वैतवाद भारतीय दर्शन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली अंग है, जिसने न केवल भारतीय चिंतन को प्रभावित किया है, बल्कि पश्चिमी दार्शनिक चिंतन पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ा है।

द्वैतवाद

‘द्वैतवाद’ भारतीय दर्शन की एक प्रमुख शाखा है, जो मुख्य रूप से वेदांत दर्शन के अंतर्गत आती है। इसकी स्थापना मध्वाचार्य ने की थी। ‘द्वैत’ का शाब्दिक अर्थ है ‘दोहरापन’ या ‘द्वैत’, और इस दर्शन में ब्रह्म और जीवात्मा के बीच के भेद को स्वीकार किया जाता है। द्वैतवाद इस विचार को नकारता है कि ब्रह्म और जीवात्मा एक ही हैं, जो अद्वैतवाद का मुख्य सिद्धांत है। द्वैतवाद के अनुसार, ब्रह्म (ईश्वर) और आत्मा (व्यक्तिगत चेतना) पूरी तरह से अलग हैं। ब्रह्म सर्वोच्च और सर्वशक्तिमान है, जबकि आत्मा सीमित और पराधीन है। द्वैतवाद में जीव, जगत (सृष्टि), और ईश्वर तीनों का अस्तित्व स्वतंत्र रूप से माना जाता है। इस दर्शन में ईश्वर को सबसे शक्तिशाली, ज्ञानी और करुणामय माना जाता है। ईश्वर सृष्टि के कारण और पालनहार हैं। द्वैतवाद में मोक्ष या मुक्ति की प्राप्ति ईश्वर की कृपा से होती है। जीव अपने कर्म और भक्ति के माध्यम से ईश्वर की कृपा प्राप्त करता है। द्वैतवाद में भक्ति को मोक्ष प्राप्ति का मुख्य मार्ग माना जाता है। ईश्वर के प्रति समर्पण और भक्ति जीव को मुक्ति की ओर ले जाती है। द्वैतवाद में वेदों और शास्त्रों को परम प्रामाणिक माना जाता है और इनके अध्ययन और पालन पर बल दिया जाता है।

द्वैतवाद का यह दृष्टिकोण भारतीय दार्शनिक चिंतन में अपना एक अलग स्थान रखता है और इसने भक्ति आंदोलनों पर गहरा प्रभाव डाला है। इस दर्शन के अनुसार, जीवन और ब्रह्मांड की समझ, ईश्वर के प्रति भक्ति और समर्पण के माध्यम से होती है।

विशिष्टाद्वैतवाद

‘विशिष्टाद्वैतवाद’ भारतीय दर्शन का एक प्रमुख स्कूल है, जिसका प्रतिपादन रामानुजाचार्य ने किया था। इस दर्शन का नाम ‘विशिष्टाद्वैत’ से आया है, जिसका अर्थ है ‘विशेषित अद्वैत’, या ‘विशेष रूप से अद्वैत’। इस दर्शन की मुख्य विशेषता यह है कि यह अद्वैतवाद के अभेद के सिद्धांत को स्वीकारता है, लेकिन इसमें विशिष्टता का भी समावेश करता है। विशिष्टाद्वैत में, ब्रह्म को सर्वोच्च सत्ता के रूप में माना जाता है, और जीवात्माओं को ब्रह्म का अंश माना जाता है। यह कहता है कि जीवात्मा ब्रह्म के साथ एक है, लेकिन फिर भी उसमें विशिष्टता है। विशिष्टाद्वैतवाद के अनुसार, ब्रह्म संपूर्ण जगत का आत्मा है। यह समस्त जीवों और जड़ प्रकृति का आधार है। इस दर्शन में ईश्वर (विष्णु या नारायण) को सर्वोच्च माना जाता है। ईश्वर सभी जीवों और जगत के स्थायी, सर्वज्ञ, और अनंत स्वरूप के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं। विशिष्टाद्वैत में जीवों के बीच विविधता को स्वीकार किया जाता है। हर जीव अपने स्वभाव, कर्म और गुणों में भिन्न होता है। मोक्ष या मुक्ति की प्राप्ति ईश्वर की अनुग्रह और भक्ति के माध्यम से होती है। जीव अपने कर्म और भक्ति के द्वारा ईश्वर की कृपा प्राप्त करता है और आत्मा का ब्रह्म के साथ विलीन होना मोक्ष है। विशिष्टाद्वैत में भक्ति और प्रपत्ति (आत्मसमर्पण) को मुक्ति के प्रमुख मार्ग के रूप में देखा जाता है। विशिष्टाद्वैतवाद में वेदों और शास्त्रों को परम प्रामाणिक माना जाता है, और इनके अध्ययन और पालन पर बल दिया जाता है।

विशिष्टाद्वैतवाद भारतीय दार्शनिक चिंतन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो ईश्वर, जीवात्मा, और जगत के बीच के संबंधों को एक विशिष्ट और सामंजस्यपूर्ण ढंग से समझाता है। इसका प्रभाव भारतीय आध्यात्मिकता और भक्ति परंपरा पर गहरा है।

वेदांत दर्शन का महत्व

वेदांत दर्शन, जो कि भारतीय दार्शनिक परंपरा का एक प्रमुख और प्रभावशाली हिस्सा है, अपनी गहराई और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। वेदांत का महत्व इसके विविध आयामों में निहित है, जो न केवल भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को प्रभावित करता है, बल्कि विश्वभर के दार्शनिक और अध्यात्मिक चिंतन पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ा है।

  • आध्यात्मिक दर्शन का उच्चतम स्वरूप: वेदांत जीवन, ब्रह्मांड, और आत्मा के संबंधों को समझने में एक उच्चतम आध्यात्मिक दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह जीवन के उद्देश्य और मानव अस्तित्व के गहरे प्रश्नों पर चिंतन करता है।
  • सार्वभौमिकता और समन्वय: वेदांत विभिन्न आध्यात्मिक और दार्शनिक विचारों का समन्वय करता है, जिसमें अद्वैत, द्वैत, और विशिष्टाद्वैत जैसे विचार शामिल हैं। इसमें सार्वभौमिक सत्य और ज्ञान की खोज है।
  • मोक्ष और आत्म-साक्षात्कार: वेदांत दर्शन में मोक्ष या मुक्ति की प्राप्ति को जीवन का अंतिम लक्ष्य माना जाता है। यह आत्म-साक्षात्कार और ब्रह्म के साथ एकत्व की प्राप्ति पर जोर देता है।
  • जीवन और विश्व का संबंध: वेदांत जीवन और विश्व के संबंध को समझने में मदद करता है, जिससे व्यक्ति अपने आसपास की दुनिया और उसके अर्थ को बेहतर ढंग से समझ सकता है।
  • धार्मिक और नैतिक मार्गदर्शन: वेदांत धार्मिक और नैतिक मार्गदर्शन प्रदान करता है, जो व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में उच्च आदर्शों को प्रोत्साहित करता है।
  • वैश्विक प्रभाव और प्रासंगिकता: वेदांत दर्शन का प्रभाव सीमाओं को पार कर वैश्विक स्तर पर फैला हुआ है। यह विश्व शांति, समरसता, और आध्यात्मिक एकता की दिशा में मार्गदर्शन करता है।
  • आधुनिक समय में प्रासंगिकता: आधुनिक समय में भी, वेदांत के सिद्धांत तनाव, आत्म-खोज, और आंतरिक शांति की खोज में महत्वपूर्ण हैं।

वेदांत दर्शन का महत्व इसके गहरे आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और जीवन के प्रति व्यापक दृष्टिकोण में निहित है, जो व्यक्तियों को न केवल आत्मिक शांति की ओर ले जाता है, बल्कि समाज और विश्व को एक बेहतर दिशा भी प्रदान करता है।

आधुनिक समय में वेदांत की प्रासंगिकता

आधुनिक समय में वेदांत दर्शन की प्रासंगिकता उसके शाश्वत सिद्धांतों और जीवन के प्रति उसके गहरे अंतर्दृष्टि में निहित है। यह दर्शन आज के युग में भी व्यक्तियों और समाज के लिए मार्गदर्शन और प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।

  • आत्म-जागरूकता और आत्म-साक्षात्कार: आधुनिक युग में जहां व्यक्ति अक्सर बाहरी उपलब्धियों और सामाजिक मानदंडों में उलझा रहता है, वेदांत उसे आत्म-जागरूकता की ओर ले जाता है। यह व्यक्तियों को अपनी आंतरिक चेतना और आत्मा की गहराई में झांकने का मार्ग प्रशस्त करता है।
  • तनाव और चिंता से मुक्ति: आधुनिक जीवनशैली के कारण बढ़ते तनाव और चिंता के युग में, वेदांत के सिद्धांत आत्मिक शांति और मानसिक संतुलन प्रदान करते हैं।
  • आध्यात्मिकता और व्यावहारिकता का संतुलन: वेदांत आध्यात्मिकता और व्यावहारिक जीवन के बीच संतुलन स्थापित करने में मदद करता है। यह शिक्षा देता है कि कैसे आध्यात्मिक मूल्यों को दैनिक जीवन में उतारा जा सकता है।
  • वैश्विक एकता और सामाजिक सद्भाव: वेदांत के सार्वभौमिक संदेश विश्व शांति और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देते हैं। यह सभी मानवों के बीच एकता और समानता की भावना को मजबूत करता है।
  • आधुनिक विज्ञान और दर्शन के साथ समन्वय: वेदांत के सिद्धांत आधुनिक विज्ञान और दर्शन के साथ अद्भुत समन्वय प्रस्तुत करते हैं, जिससे यह जीवन के विभिन्न पहलुओं में प्रासंगिक बना रहता है।
  • व्यक्तिगत और सामाजिक विकास: वेदांत व्यक्तिगत विकास के साथ-साथ सामाजिक उत्थान का भी मार्गदर्शन करता है, जिससे समाज में सामंजस्य और सहयोग की भावना विकसित होती है।
  • व्यापक जीवन दृष्टिकोण: वेदांत जीवन के प्रति एक व्यापक और संपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान करता है, जिससे व्यक्ति जीवन के विभिन्न पहलुओं को अधिक संतुलित और समग्र रूप से समझ सकता है।

आधुनिक समय में वेदांत की प्रासंगिकता इसके योगदान को आध्यात्मिक, नैतिक, और दार्शनिक चिंतन में प्रमुखता से दर्शाती है। यह न केवल व्यक्तियों के आंतरिक विकास के लिए, बल्कि समाज और विश्व के समग्र कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण है।

 

वेदांत दर्शन से संबंधित प्रश्नोत्तरी

  1. वेदांत दर्शन क्या है?
    • वेदांत भारतीय दर्शन की एक प्रमुख शाखा है जो वेदों के अंतिम भाग, अर्थात उपनिषदों पर आधारित है।
  2. वेदांत दर्शन के मुख्य तत्व क्या हैं?
    • वेदांत दर्शन के मुख्य तत्व हैं ब्रह्म, आत्मा, जगत, मोक्ष, और माया।
  3. वेदांत दर्शन के प्रमुख प्रवर्तक कौन थे?
    • आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, और मध्वाचार्य वेदांत दर्शन के प्रमुख प्रवर्तक माने जाते हैं।
  4. वेदांत दर्शन में ‘ब्रह्म’ का क्या अर्थ है?
    • वेदांत में ‘ब्रह्म’ को सर्वोच्च, निराकार, सर्वव्यापी और चेतन सत्ता के रूप में देखा जाता है।
  5. वेदांत में ‘आत्मा’ का क्या महत्व है?
    • आत्मा को व्यक्तिगत चेतना के रूप में माना जाता है और इसे ब्रह्म का ही एक अंश समझा जाता है।
  6. वेदांत में ‘मोक्ष’ क्या है?
    • मोक्ष जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति और आत्मा का ब्रह्म के साथ एकीकरण है।
  7. वेदांत दर्शन में ‘जगत’ का क्या अर्थ है?
    • जगत को वेदांत में माया या इल्लूजन के रूप में देखा जाता है, जो अस्थायी और परिवर्तनशील है।
  8. अद्वैत वेदांत क्या है?
    • अद्वैत वेदांत आदि शंकराचार्य द्वारा प्रतिपादित विचारधारा है जो ब्रह्म और आत्मा के बीच किसी भेद को नहीं मानती।
  9. द्वैत वेदांत क्या है?
    • द्वैत वेदांत मध्वाचार्य द्वारा प्रतिपादित विचारधारा है जो ब्रह्म और आत्मा के बीच के भेद को मानती है।
  10. विशिष्टाद्वैत वेदांत क्या है?
    • विशिष्टाद्वैत रामानुजाचार्य द्वारा प्रतिपादित विचारधारा है जो ब्रह्म और आत्मा के बीच एक विशेष संबंध को मानती है।
  11. वेदांत दर्शन का मानव जीवन में क्या महत्व है?
    • वेदांत जीवन के उद्देश्य, आत्म-साक्षात्कार, और मानवीय मूल्यों को समझने में मार्गदर्शन करता है।
  12. वेदांत और आधुनिक विज्ञान में क्या समानताएं हैं?
    • वेदांत और आधुनिक विज्ञान दोनों ही जीवन और ब्रह्मांड के सूक्ष्म अध्ययन पर जोर देते हैं, और दोनों में एकता और संपूर्णता के सिद्धांत मौजूद हैं।
  13. वेदांत दर्शन का विश्व शांति में क्या योगदान है?
    • वेदांत दर्शन विश्व शांति और सामाजिक सद्भाव की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
  14. वेदांत दर्शन कैसे आधुनिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है?
    • वेदांत आंतरिक शांति, आत्म-साक्षात्कार, और नैतिक मूल्यों के माध्यम से आधुनिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है।

 

 

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