सांख्य दर्शन

सांख्य दर्शन हिंदू धर्म के छेह दर्शनों में से एक है। इससे पहले हमने दो दर्शन जो की न्याय दर्शन  और वैशेषिक दर्शन के बारे मैं विस्तार से चर्चा की है, और आज हम बात करने जा रहे हैं सांख्य दर्शन के बारे मैं। इस ‘सांख्यकारिका’ दर्शन के लेखक ऋषि कपिल मुनि ने स्थापित किया था। ऋषि कपिल मुनि सनातन धर्म के प्रमुख ऋषियों में से एक माने जाते हैं।श्रीमद्भागवत महापुराण में कपिल मुनि का महत्वपूर्ण उल्लेख है। इसमें वे अपनी माता देवहूति को आध्यात्मिक ज्ञान देते हैं। उन्होंने अपनी माता को मोक्ष की सच्चाई और जीवन की परिप्रेक्ष्या में अध्यात्म का महत्व समझाया। सांख्य दर्शन का मुख्य उद्देश्य मनुष्य को जीवन की सच्चाई और ब्रह्मांड के रहस्यों के प्रति जागरूक करना है।

सांख्य दर्शन

सांख्य दर्शन की प्रमुख शिक्षाएँ:

सांख्य दर्शन, जिसे कपिल मुनि ने प्रस्तुत किया, हिंदू दार्शनिक परंपरा की सबसे प्राचीन प्रणालियों में से एक है। यहाँ सांख्य दर्शन की प्रमुख शिक्षाएँ विस्तार से प्रस्तुत की गई हैं:-

प्रकृति और पुरुष

सांख्य दर्शन में प्रकृति और पुरुष के तत्त्वों का महत्वपूर्ण स्थान है। इन दो तत्त्वों को समझना हमें जीवन, सृष्टि और आत्मा की वास्तविकता की समझ दिलाता है।

  • प्रकृति (प्रधान): प्रकृति को सांख्य दर्शन में प्रधान कहा जाता है। यह अचेतन तत्त्व है, जो सृष्टि की सामग्रिक शक्ति के रूप में परिभाषित होती है। प्रकृति में तीन मूल गुण होते हैं – सत्त्व, रजस् और तमस्। इन तीनों गुणों के संघर्ष और संतुलन से प्रकृति की विविधता और परिवर्तनशीलता का निर्माण होता है। प्रकृति से ही अन्य सभी तत्त्वों का विकास होता है, जैसे महत्तत्व (बुद्धि), अहंकार, और पाँच महाभूत (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी)।
  • पुरुष: पुरुष को चेतन तत्त्व माना जाता है। यह आत्मा या चैतन्य का प्रतीक है जो नित्य, अविकारी, और सर्वव्यापी है। पुरुष स्वयं में स्थायी है, लेकिन उसकी उपस्थिति से प्रकृति में परिवर्तन होता है। पुरुष और प्रकृति में एक स्पष्ट भिन्नता है। प्रकृति सभी जीवों में समान है, जबकि प्रत्येक पुरुष विशिष्ट है। पुरुष साक्षी भाव में होता है, जिसका मतलब है कि वह सभी घटनाओं और परिवर्तनों का साक्षी बनता है, लेकिन स्वयं उसमें प्रतिभागी नहीं होता। ब पुरुष अपने आप को प्रकृति से अलग पहचानता है और उससे विच्छिन्न होता है, तो वह मोक्ष की स्थिति को प्राप्त करता है।

इस प्रकार, प्रकृति और पुरुष के तत्त्वों की समझ सांख्य दर्शन के मूल सिद्धांतों में से एक है, जो हमें जीवन और ब्रह्मांड की समझ में सहायक होता है।

गुण

सांख्य दर्शन में प्रकृति के तीन मुख्य गुण विचारित किए गए हैं, जो हैं – सत्त्व, रजस् और तमस्। ये गुण प्रकृति के अभिन्न हिस्से हैं और प्रकृति के सभी परिवर्तनों में उनका महत्वपूर्ण योगदान है।

  • सत्त्व गुण: सत्त्व गुण प्रकाश, ज्ञान और शुद्धता का प्रतीक है। यह पॉजिटिव शक्तियों का स्रोत है और मनुष्य को उचित मार्ग पर ले जाता है। जब सत्त्व गुण प्रधान होता है, तो व्यक्ति में शांति, ज्ञान, और समाजवादी प्रवृत्तियां उत्पन्न होती हैं।
  • रजस् गुण: रजस् गुण गति, क्रियावली और उत्साह का प्रतीक है। यह व्यक्ति को कार्य में प्रवृत्त करने वाली शक्ति प्रदान करता है। जब रजस् गुण प्रधान होता है, तो व्यक्ति में उत्साह, आकांक्षा, और क्रियाशीलता उत्पन्न होती है। लेकिन, अधिकता में इसका प्रभाव असंतुलन और अवसाद भी ला सकता है।
  • तमस् गुण: तमस् गुण अज्ञान, अलस्य और अंधकार का प्रतीक है। यह प्रकृति की स्थिरता और प्रतिरोध की भावना को दर्शाता है। जब तमस् गुण प्रधान होता है, तो व्यक्ति में अज्ञान, अवसाद और निराशा की भावनाएँ उत्पन्न होती हैं।

प्रकृति में इन तीनों गुणों का संतुलन होता है। जीवन के विभिन्न परिप्रेक्ष्य में एक विशेष गुण प्रधान हो सकता है, लेकिन अन्य दो गुण भी सदैव उपस्थित रहते हैं। इन गुणों की समझ से ही व्यक्ति अपने आप को और अपने चारों तरफ की दुनिया को समझ सकता है।

एवोल्यूशन का सिद्धांत

सांख्य दर्शन में जिस प्रकार का एवोल्यूशन का सिद्धांत व्यक्त किया गया है, वह जीवन और ब्रह्मांड के उत्थान को समझाने का एक अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। सांख्य दर्शन के अनुसार, सभी सृष्टि का आरंभ प्रकृति से होता है। प्रकृति उस अव्यक्त स्थिति को दर्शाती है जहाँ सत्त्व, रजस् और तमस् गुण संतुलित स्थिति में होते हैं। पुरुष (आत्मा) की उपस्थिति से प्रकृति में परिवर्तन आता है और इससे पहला एवोल्यूशनार्य प्रोडक्ट, महत्तत्व या बुद्धि का उत्थान होता है। महत्तत्व से अहंकार का सृजन होता है, और अहंकार से पाँच तन्मात्राएँ और पाँच महाभूत (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी) का सृजन होता है। इन महाभूतों से ही हमारे शारीरिक शरीर का निर्माण होता है, और इस प्रकार सम्पूर्ण जीवन की उत्पत्ति और विकास की प्रक्रिया होती है। सांख्य दर्शन के अनुसार, यह सृष्टि की प्रक्रिया जीवन को उत्कृष्टता की ओर ले जाती है। जब पुरुष अपने चैतन्य को समझता है और प्रकृति के बंधनों से मुक्त होता है, तो उसे मोक्ष प्राप्त होता है।

इस प्रकार, सांख्य दर्शन का एवोल्यूशन का सिद्धांत जीवन और सृष्टि के विकास को व्यक्त करता है, जिसमें प्रकृति और पुरुष दोनों की भूमिका महत्वपूर्ण है।

मोक्ष

मोक्ष संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है ‘मुक्ति’ या ‘छुटकारा’। सांख्य दर्शन में मोक्ष का धार्मिक और दार्शनिक महत्व है। यहाँ, मोक्ष का संदर्भ प्रकृति के बंधनों और भ्रांतियों से पुरुष की मुक्ति को दर्शाता है। जब तक पुरुष (आत्मा) अपनी असली पहचान को नहीं पहचानता और उसे जानकारी नहीं होती कि वह प्रकृति से भिन्न है, तब तक वह प्रकृति के गुणों और उसकी भ्रांतियों में फंसा रहता है। सांख्य दर्शन में माना जाता है कि जब पुरुष को सच्चाई का ज्ञान होता है कि वह प्रकृति से अलग और स्वतंत्र है, तब ही वह प्रकृति के बंधनों से मुक्त होता है। जब पुरुष अपने सच्चे स्वरूप को जान लेता है, तो प्रकृति अपना कार्य पूरा होने के बाद अपनी प्राथमिक स्थिति में वापस लौट जाती है। इस प्रकार, पुरुष का प्रकृति से विच्छेद हो जाता है। मोक्ष प्राप्ति का मतलब है सच्चाई की पहचान, आत्मा की अद्वितीयता का अनुभव और प्रकृति के गुणों और उसकी विकृतियों से मुक्ति। जब पुरुष इस स्थिति को प्राप्त करता है, तो वह सच्चे अर्थ में स्वतंत्र हो जाता है और उसे सच्ची आनंद और शांति का अनुभव होता है।

इस प्रकार, मोक्ष सांख्य दर्शन में परम प्राप्ति के रूप में माना जाता है, जिसमें पुरुष प्रकृति के सभी बंधनों और विभ्रांतियों से मुक्त हो जाता है और अपने सच्चे स्वरूप में स्थित होता है। इन शिक्षाओं के माध्यम से, सांख्य दर्शन हमें जीवन, सृष्टि, और हमारे अस्तित्व के मूल तत्त्वों को समझाने का प्रयास करता है।

 

सांख्य दर्शन से संबंधित 15 प्रश्नोत्तरी

  1. सांख्य दर्शन क्या है?
    • सांख्य एक प्राचीन भारतीय दर्शन है जो द्वैतवादी प्रकृति और पुरुष की अवधारणा पर आधारित है।
  2. सांख्य दर्शन के प्रणेता कौन हैं?
    • सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल माने जाते हैं।
  3. सांख्य कारिका किसने लिखी?
    • सांख्य कारिका ईश्वर कृष्ण द्वारा लिखित ग्रंथ है।
  4. सांख्य दर्शन का मुख्य सिद्धांत क्या है?
    • सांख्य का मुख्य सिद्धांत प्रकृति और पुरुष के बीच का द्वैत है।
  5. सांख्य दर्शन में ‘पुरुष’ क्या है?
    • पुरुष आत्मा या चेतना का प्रतीक है जो निर्लिप्त और अकर्ता है।
  6. सांख्य दर्शन में ‘प्रकृति’ क्या है?
    • प्रकृति मूल पदार्थ है जिससे सारी सृष्टि की उत्पत्ति होती है।
  7. सांख्य दर्शन में गुण क्या हैं?
    • गुण प्रकृति के तीन मूल तत्व हैं – सत्त्व, रजस, और तमस।
  8. सांख्य दर्शन में मोक्ष का क्या अर्थ है?
    • मोक्ष पुरुष का प्रकृति से विलगाव और चेतना की पूर्णता है।
  9. सांख्य और योग दर्शन में क्या संबंध है?
    • सांख्य और योग दोनों प्राचीन भारतीय दार्शनिक प्रणालियाँ हैं और योग सांख्य के सिद्धांतों पर आधारित है।
  10. सांख्य दर्शन में ‘एवोल्यूशन’ का क्या अर्थ है?
    • एवोल्यूशन सांख्य में प्रकृति के विकास और विभिन्न तत्वों के उत्पन्न होने की प्रक्रिया है।
  11. सांख्य दर्शन के अनुसार ज्ञान क्या है?
    • ज्ञान पुरुष और प्रकृति की सही समझ और उनके बीच के अंतर की पहचान है।
  12. सांख्य दर्शन में ‘महत’ क्या है?
    • महत सांख्य दर्शन में प्रकृति का पहला विकासित रूप है, जो बुद्धि या उच्च ज्ञान का प्रतीक है।
  13. सांख्य दर्शन का आधुनिक जीवन में क्या महत्व है?
    • सांख्य दर्शन आधुनिक जीवन में चेतना और मानव जीवन की प्रकृति की गहरी समझ प्रदान करता है।
  14. सांख्य दर्शन किन अन्य भारतीय दर्शनों से प्रभावित है?
    • सांख्य दर्शन अन्य भारतीय दर्शनों से प्रेरणा लेता है, लेकिन विशेष रूप से योग और वेदांत दर्शन पर इसका प्रभाव है।
  15. सांख्य दर्शन की शिक्षाएँ आज के समय में कैसे लागू होती हैं?
    • सांख्य दर्शन की शिक्षाएँ आधुनिक समय में आत्म-जागरूकता, आध्यात्मिकता, और मनोविज्ञान के क्षेत्र में मार्गदर्शन करती हैं।

 

अन्य महत्वपूर्ण लेख

सनातन धर्म में न्याय दर्शन ?

सनातन धर्म में वैशेषिक दर्शन ?

तीन शरीर (स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर तथा कारण शरीर) की विस्तृत जानकारी।

सुषुम्ना नाड़ी से जुडी सम्पूर्ण जानकारी

भारतीय योग शास्त्र में पांच प्राण ?

 

 

4 thought on “सनातन धर्म में सांख्य दर्शन ?”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *