वैशेषिक दर्शन

वैशेषिक दर्शन सनातन धर्म के छह प्रमुख दर्शन शाखओं मैं से एक है। इससे पहले हमने न्याय दर्शन को समझा है और आज हम वैशेषिक दर्शन को समझने की कोशिश करेंगे। वैशेषिक दर्शन के संस्थापक कणाद ऋषि थे। कणाद ऋषि का उनका असली नाम ‘उलूक’ था, लेकिन वे ‘कणाद’ नाम से प्रसिद्ध हो गए थे क्योंकि वे अणुओं या ‘कण’ पर विशेष ध्यान देने वाले थे। कणाद ऋषि ने वैशेषिक दर्शन में भौतिक विज्ञान के मूल तत्त्वों की चर्चा की। वे इस विचार में थे कि सभी पदार्थ अणुओं से बने होते हैं और ये अणु अविभाज्य होते हैं। वे  यह भी मानते थे कि इन अणुओं का संघटन और विभाजन से ही सभी जड़ और चेतन पदार्थ उत्पन्न होते हैं।

वैशेषिक दर्शन

यह दर्शन, वैदिक दर्शन की श्रेणी मैं आता है। इस दर्शन का मुख्य उद्देश्य प्रकृति में विद्यमान पदार्थों का विवेचन करना है। इसमें पदार्थों की स्वरूप, गुण, और क्रिया पर विस्तार से चर्चा होती है। वैशेषिक दर्शन में आत्मा को चेतना और ज्ञान का केंद्रीय स्रोत माना गया है। जब आत्मा के सभी अज्ञान और बंधन समाप्त हो जाते हैं, तो वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। वैशेषिक दर्शन में छह प्रकार के पदार्थों का वर्णन किया गया है, जो निम्नलिखित हैं:-

1). द्रव्य (Substance): द्रव्य का अर्थ है वह मौलिक तत्त्व जिसमें गुण और क्रिया निवास करते हैं। हर द्रव्य में उसके विशेष गुण होते हैं जिससे वह अन्य द्रव्य से भिन्न होता है। द्रव्य तत्त्व वैशेषिक दर्शन में सृष्टि के स्थूल और सूक्ष्म संरचना की समझ के लिए महत्वपूर्ण है। यह हमें जीवन और ब्रह्मांड की संरचना और प्रकृति के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करता है। वैशेषिक दर्शन में द्रव्य के नौ प्रकार माने गए हैं, जो निम्नलिखित हैं:

  • पृथ्वी (Earth): स्थूल और प्रत्यक्ष रूप में अनुभव होने वाला तत्त्व, जिसमें गंध जैसा गुण है।
  • जल (Water): इसे छूने पर शीतलता का अहसास होता है और इसमें स्वाद होता है।
  • अग्नि (Fire): यह तत्त्व उष्णता और प्रकाश का स्रोत है, और इसमें रंग होता है।
  • वायु (Air): यह अदृश्य है और स्पर्श जैसा गुण है।
  • आकाश (Ether): आकाश का मुख्य गुण शब्द है, और यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है।
  • समय (Time): समय वह तत्त्व है जिसके द्वारा क्रियाओं के बीच का अंतर मापा जाता है।
  • दिशा (Direction): दिशा वह तत्त्व है जिससे स्थान का निर्धारण होता है।
  • आत्मा (Soul): आत्मा सच्चिदानंद स्वरूप, अविनाशी और चैतन्य प्रकृति का है।
  • मन (Mind): मन वह उपकरण है जिसके माध्यम से आत्मा सोचता, समझता, और अनुभव करता है।

हर द्रव्य में उसके विशेष गुण होते हैं जिससे वह अन्य द्रव्य से भिन्न होता है। द्रव्य तत्त्व वैशेषिक दर्शन में सृष्टि के स्थूल और सूक्ष्म संरचना की समझ के लिए महत्वपूर्ण है। यह हमें जीवन और ब्रह्मांड की संरचना और प्रकृति के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करता है।

2). गुण (Quality):- वैशेषिक दर्शन में, ‘गुण’ वह विशेषता होती है जो किसी द्रव्य में अधिष्ठित होती है और उसे अन्य द्रव्यों से पृथक्कृत करती है। गुण वह अभिवाच्य (सूचक) है जिससे हम किसी विषय को जानते हैं और उसे समझते हैं। वैशेषिक दर्शन में गुणों के 24 प्रकार माने गए हैं, जिसमें रंग, स्वाद, गंध, स्पर्श आदि शामिल हैं। ये गुण उस द्रव्य में स्थित होते हैं जिसमें वे पाए जाते हैं और उस द्रव्य की पहचान और अनुभूति को परिभाषित करते हैं। यह 24 गुण हैं –

  • रंग (Color): जैसे लाल, हरा, नीला आदि।
  • स्वाद (Taste): मधुर, खट्टा, लवण, कटु, तिक्त और कषाय।
  • गंध (Smell): सुगंधित और दुर्गंधित।
  • स्पर्श (Touch): शीत, उष्ण, मुलायम, कठोर आदि।
  • संख्या (Number): एकता, द्विता आदि।
  • परिमाण (Size): बड़ा, छोटा, दीर्घ, ह्रस्व आदि।
  • पृथक्त्व (Individuality): विशेष वस्तु की अद्वितीयता।
  • संयोग (Conjunction): दो वस्तुओं का संयोजन।
  • विभाजन (Separation): दो वस्तुओं का विभाजन।
  • परात्प (Remoteness): दूरी या दूर होना।
  • समीपता (Proximity): नजदीकी या पास होना।
  • गुरुत्व (Gravity): भारीपन।
  • द्रवत्व (Fluidity): द्रव अवस्था।
  • स्नेह (Viscosity): चिकनाहट।
  • शब्द (Sound): सुनाई देने वाला।
  • बुद्धि (Intellect): समझ या ज्ञान।
  • सुख (Pleasure): आनंद की भावना।
  • दुःख (Pain): दुखद भावना।
  • इच्छा (Desire): इच्छाशक्ति।
  • द्वेष (Aversion): प्रतिकूलता या घृणा।
  • प्रयत्न (Effort): कोई कार्य करने की कोशिश।
  • गुण (Quality): द्रव्य में पाए जाने वाले अन्य गुण।
  • संस्कार (Impression): पूर्व अनुभव का संचार।
  • दोष (Fault): अवगुण या दोष।

इन 24 गुणों का समझना वैशेषिक दर्शन में प्राकृतिक जगत के विश्लेषण में महत्वपूर्ण है। ये गुण जगत के विभिन्न पहलुओं की पहचान और समझ में योगदान करते हैं।

गुण हमें द्रव्य के विशेषताओं को समझने में मदद करते हैं। जबकि द्रव्य उस आधार को प्रदान करता है जिस पर गुण अधिष्ठित होते हैं। बिना द्रव्य के गुण अस्तित्व में नहीं हो सकते, और द्रव्य अपने गुणों के बिना पहचान नहीं होती। गुण विशेषता हमें जगत के विभिन्न पहलुओं को पहचानने, विभाजित करने, और विश्लेषित करने में मदद करते हैं। ये वैशेषिक दर्शन में द्रव्य, क्रिया, और समवाय के साथ एक महत्वपूर्ण तत्त्व के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं, जो प्राकृतिक जगत की समझ और उसके अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण हैं।

अंत में, गुण वह तत्त्व है जिससे द्रव्य की पहचान, अनुभूति, और विशेषता का पता चलता है, और यह वैशेषिक दर्शन के अध्ययन में एक केंद्रीय भूमिका निभाता है।

3). कर्म (Activity):- वैशेषिक दर्शन में ‘कर्म’ को एक प्रमुख पदार्थ माना गया है। जब हम ‘कर्म’ शब्द का उल्लेख करते हैं, तो आमतौर पर इसे किसी प्रकार की गतिविधि या क्रियावली से संबंधित मानते हैं, लेकिन वैशेषिक दर्शन में इसका अर्थ और भी व्यापक है। वैशेषिक दृष्टिकोण से, ‘कर्म’ वह तत्व है जिसके कारण द्रव्य में गति या परिवर्तन आता है। यह गति सामान्यत: बाह्य बल से उत्पन्न होती है, जैसे एक पत्थर को फेंकना। वैशेषिक दर्शन में कर्म के तीन प्रकार हैं:

  • उत्क्षेपण (उपर की ओर गति): वैशेषिक दर्शन में वह कर्म (गतिविधि) है जिसमें एक द्रव्य (वस्तु) उपर की ओर चलती है या उसकी ओर गति होती है। इस तरह की गतिविधि का सामान्यत: दर्शन होता है जब कोई वस्तु नीचे से उपर की ओर उछाली जाती है।
    • कारण: उत्क्षेपण की गतिविधि का कारण बाह्य बल होता है, जैसे किसी वस्तु को हाथ से उछालना।
    • प्रकृति: जब कोई वस्तु उत्क्षेपण में होती है, तो उसकी प्राकृतिक प्रवृत्ति होती है अपनी स्थिति को पुनः प्राप्त करने की, जिसका अर्थ है कि जब बल समाप्त होता है, वस्तु पुनः नीचे गिरती है।
    • उदाहरण: एक बॉल को हाथ से उछालना। जब बॉल को उछाला जाता है, तो यह उपर की ओर जाता है – यही उत्क्षेपण है। जब बॉल की उपर की ओर की गति समाप्त होती है, तो यह गुरुत्वाकर्षण के कारण वापस नीचे आता है।
    • महत्व: उत्क्षेपण का महत्व उस बाह्य बल को समझने में है जो वस्तु को उसकी प्राकृतिक स्थिति से बाहर ले जाता है और उसे एक नई दिशा में प्रेरित करता है।
  • अवक्षेपण (नीचे की ओर गति): अवक्षेपण वैशेषिक दर्शन में वह कर्म (गतिविधि) है जिसमें एक द्रव्य (वस्तु) नीचे की ओर चलती है या उसकी ओर गति होती है। जब किसी वस्तु को उछाला जाता है और वह अपनी उच्चतम सीमा तक पहुँचता है, तो उसकी गति नीचे की ओर होने लगती है, जिसे अवक्षेपण कहा जाता है।
    • कारण: अवक्षेपण की गतिविधि का मुख्य कारण गुरुत्वाकर्षण (भूमि की ओर आकर्षण) है।
    • प्रकृति: जब वस्तु अवक्षेपण में होती है, तो उसकी प्राकृतिक प्रवृत्ति होती है भूमि की ओर जाने की।
    • उदाहरण: जब हम एक बॉल को उछालते हैं और वह अपनी उच्चतम सीमा तक पहुँचता है, तो वह बॉल गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे की ओर गिरता है।
    • महत्व: अवक्षेपण का महत्व वस्तुओं के गुरुत्वाकर्षण से संबंधित आचरण को समझने में है। यह हमें यह बताता है कि किस प्रकार वस्तुओं की गति प्राकृतिक रूप से भूमि की ओर होती है जब वे अपनी स्थिति में नहीं होते
  • गमन (तिर्यक गति): गमन वैशेषिक दर्शन में वह कर्म (गतिविधि) है जिसमें द्रव्य (वस्तु) तिर्यक, अर्थात सीधा, न ऊपर और न नीचे की ओर चलती है। इसे हम आमतौर पर समतल में गति या होरिजॉन्टल में गति के रूप में जानते हैं।
    • कारण: गमन की गतिविधि का कारण विभिन्न हो सकता है, जैसे बाहरी बल, धकेलना, खींचना आदि।
    • प्रकृति: जब वस्तु गमन में होती है, तो उसकी प्राकृतिक प्रवृत्ति होती है समतल में चलने की, बिना किसी ऊँचाई या गहराई में जाए।
    • उदाहरण: जब हम एक कार को सड़क पर चलते हुए देखते हैं, तो वह कार तिर्यक गति में होती है। इसी तरह, जब हम फ्लोर पर फिसलते हुए एक पेन देखते हैं, वह भी तिर्यक गति में होती है।
    • महत्व: गमन का महत्व वस्तुओं के तिर्यक गति को समझने में है। यह हमें यह बताता है कि वस्तुओं की गति कैसे होती है जब वे न ऊपर जाती हैं और न नीचे, अपितु समतल में चलती हैं।

इन तीन प्रकार की गतियों के माध्यम से, वैशेषिक दर्शन द्रव्य की गतिविधियों और परिवर्तनों को समझने का प्रयास करता है। यह गतिविधियाँ बाह्य बल और कारण-क्रिया संबंध के सिद्धांत पर आधारित हैं।

इस तरह, वैशेषिक दर्शन में ‘कर्म’ वह ज्योतिषीय तत्व है जो द्रव्य की गतिविधियों को प्रेरित करता है और उसे एक निश्चित दिशा में मार्गदर्शित करता है। यह दर्शन इस तत्व को समझने के लिए अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है जो प्राकृतिक जगत की गतिविधियों और परिवर्तनों को बेहतर समझने में मदद करता है।

4). सामान्य (Generality):- सामान्य, वैशेषिक दर्शन में एक महत्वपूर्ण तत्त्व है जिसे विशेषता या व्यक्तित्व से अलग जाना जाता है। जब हम कहते हैं कि कुछ वस्त्र ‘नीला’ है, ‘गर्म’ है या ‘भारी’ है, तो हम उस विशेष वस्त्र की नहीं, बल्कि उस विशेष गुण या विशेषता की सामान्यता का संदर्भ ले रहे हैं।

    • स्वरूप: सामान्य का स्वरूप वह है जो एकाधिक वस्तुओं में समान रूप से पाया जाता है। जैसे, गाय का विशेष स्वरूप उसकी गायत्व सामान्यता होती है, जो सभी गायों में समान होती है।
    • उद्देश्य: सामान्य का उद्देश्य वस्तुओं या जीवों को उनकी प्रकृति या विशेषताओं के आधार पर वर्गीकृत करना है।
    • उदाहरण: जब हम ‘पेड़’ शब्द का उपयोग करते हैं, हम किसी विशेष पेड़ की बजाय पेड़ों की सामान्यता का संदर्भ ले रहे हैं।
    • महत्व: सामान्य की जो भी अवबोधना है, वह एक विशेष वस्तु की स्थायिता, अस्तित्व या विशेषता के बिना अधूरी होती है। अर्थात, जब तक किसी वस्तु में वह विशेषता नहीं है, तब तक उसका सामान्य अवबोधन नहीं हो सकता।

इस प्रकार, सामान्य वैशेषिक दर्शन में वस्तुओं के सामान्य और विशेष गुणों के बीच अंतर को समझाने के लिए एक महत्वपूर्ण तत्त्व है। यह उन गुणों या विशेषताओं की पहचान है जो कई वस्तुओं में समान रूप से पाए जाते हैं।

5). विशेष (Particularity):- वैशेषिक दर्शन में ‘विशेष’ एक ऐसा तत्त्व है जिससे एक द्रव्य अन्य द्रव्य से पृथक और अद्वितीय होता है। जबकि ‘सामान्य’ वस्तुओं में समानता को प्रकट करता है, वही ‘विशेष’ वस्तुओं की पृथकता और अद्वितीयता को प्रकट करता है।

    • स्वरूप: विशेष वह अदृश्य और अव्यक्त तत्त्व है जो द्रव्य को अन्य द्रव्य से अलग बनाता है। यह एक विशिष्ट द्रव्य में ही विद्यमान होता है और उसे अन्य से पृथक करता है।
    • उद्देश्य: विशेष का मुख्य उद्देश्य वस्तुओं की पृथकता और वैयक्तिकता को पहचानना है।
    • उदाहरण: दो समान प्रकार की पेंसिलें हो सकती हैं, लेकिन प्रत्येक पेंसिल में एक विशिष्टता होती है जिससे वह दूसरी पेंसिल से अलग होती है। इस विशिष्टता को ही ‘विशेष’ कहते हैं।
    • महत्व: विशेष वैशेषिक दर्शन में महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें यह बताता है कि कैसे दो वस्त्र, जो बाहर से एक समान दिखते हैं, अंतर्निहित रूप से अलग होते हैं।

इस प्रकार, ‘विशेष’ वह अदृश्य तत्त्व है जो प्रत्येक द्रव्य को अद्वितीय और अदृश्य रूप से पहचानता है। यह वस्तुओं की व्यक्तिगतता और पृथकता का कारण है, जिससे वे अन्य वस्तुओं से अलग होते हैं।

6). संयोग (Conjunction) और वियोग (Disjunction):- संयोग, वैशेषिक दर्शन में, दो द्रव्यों के बीच उनकी संपर्क या योग को दर्शाता है।

    • स्वरूप: संयोग वह अदृश्य और अलौकिक संबंध है जिसके माध्यम से दो या दो से अधिक वस्त्रेणियाँ एक-दूसरे से जुड़ती हैं।
    • उदाहरण: जब दो पत्थरों को एक-दूसरे से स्पर्श किया जाता है, उनके बीच संयोग होता है।
    • महत्व: संयोग के बिना वस्त्रों का अधिकांश क्रियावली संभव नहीं होता है। यह द्रव्यों के बीच संपर्क और योग का मूल तत्त्व है।

वियोग, वैशेषिक दर्शन में, दो द्रव्यों के बीच उनके अलग हो जाने का संकेत करता है।

    • स्वरूप: जब दो द्रव्य संयोग से मुक्त होते हैं और एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं, उस संबंध को वियोग कहते हैं।
    • उदाहरण: जब दो पत्थर जो पहले संयुक्त थे, उन्हें अलग किया जाता है, उनके बीच वियोग होता है।
    • महत्व: वियोग के बिना वस्त्रों के अलग हो जाने की प्रक्रिया संभव नहीं होती है। यह वस्त्रों के संपर्क और संयोग को तोड़ने वाला मूल तत्त्व है।

इस प्रकार, संयोग और वियोग वैशेषिक दर्शन में द्रव्यों के बीच संपर्क और असंपर्क के तत्त्वों को प्रकट करते हैं और उनका महत्व संसार की संरचना और क्रियावली में है।

वैशेषिक दर्शन में आत्मा को चेतना और ज्ञान का केंद्रीय स्रोत माना गया है। जब आत्मा के सभी अज्ञान और बंधन समाप्त हो जाते हैं, तो वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। वैशेषिक दर्शन प्रकृति के पदार्थों की स्वरूप, गुण, और क्रिया का सटीक अध्ययन प्रस्तुत करता है। इसमें तत्त्वों की व्यापक और वैज्ञानिक रूप से चर्चा की गई है, जिससे हमें प्रकृति और इसके पदार्थों की गहरी समझ होती है।

वैशेषिक दर्शन से संबंधित 14 प्रश्नोत्तरी

  1. वैशेषिक दर्शन क्या है?
    • वैशेषिक भारतीय दर्शन की एक प्राचीन शाखा है जो पदार्थों के विभाजन और उनके गुण-धर्मों पर केंद्रित है।
  2. वैशेषिक दर्शन के प्रणेता कौन थे?
    • महर्षि कणाद वैशेषिक दर्शन के प्रणेता माने जाते हैं।
  3. वैशेषिक सूत्र किसने लिखे?
    • वैशेषिक सूत्र महर्षि कणाद द्वारा लिखित ग्रंथ हैं।
  4. वैशेषिक दर्शन का मुख्य विषय क्या है?
    • इसका मुख्य विषय पदार्थों की प्रकृति और उनके बीच के संबंध हैं।
  5. वैशेषिक दर्शन में ‘पदार्थ’ की कितनी कैटेगरी होती हैं?
    • वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ होते हैं: द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय, और अभाव।
  6. ‘अणु’ की अवधारणा वैशेषिक दर्शन में क्या है?
    • वैशेषिक दर्शन में ‘अणु’ को सबसे छोटा, अविभाज्य कण माना जाता है।
  7. वैशेषिक दर्शन में ‘द्रव्य’ क्या है?
    • ‘द्रव्य’ वैशेषिक दर्शन में पदार्थ का एक रूप है, जिसमें नौ तत्व शामिल हैं: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, समय, दिशा, आत्मा और मन।
  8. वैशेषिक और न्याय दर्शन में क्या सम्बन्ध है?
    • वैशेषिक और न्याय दोनों ही तर्क और विश्लेषण पर आधारित हैं और अक्सर इन्हें सम्मिलित रूप से न्याय-वैशेषिक के रूप में पढ़ा जाता है।
  9. वैशेषिक दर्शन का आधुनिक विज्ञान से क्या सम्बन्ध है?
    • वैशेषिक दर्शन की अणुवादी थ्योरी आधुनिक परमाणु सिद्धांत के समानांतर है।
  10. वैशेषिक दर्शन के अनुसार ‘कर्म’ क्या है?
    • ‘कर्म’ वैशेषिक दर्शन में पदार्थों की गति या परिवर्तन को दर्शाता है।
  11. वैशेषिक दर्शन में ‘गुण’ क्या होते हैं?
    • ‘गुण’ वैशेषिक दर्शन में विभिन्न पदार्थों के गुणधर्म हैं, जैसे रंग, गंध, स्वाद, आदि।
  12. वैशेषिक दर्शन का भारतीय दर्शन में क्या महत्व है?
    • वैशेषिक दर्शन भारतीय दर्शन में वस्तुनिष्ठ ज्ञान और पदार्थ विज्ञान का महत्वपूर्ण स्रोत है।
  13. वैशेषिक दर्शन का आधुनिक दर्शन में क्या प्रभाव है?
    • वैशेषिक के सिद्धांत आधुनिक दर्शन और विज्ञान में पदार्थ की प्रकृति और अणुवाद के अध्ययन में प्रासंगिक हैं।
  14. वैशेषिक दर्शन में ‘समवाय’ क्या है?
    • ‘समवाय’ वैशेषिक दर्शन में विभिन्न तत्वों के बीच का सहज संबंध है।

 

 

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